यदि मनुष्य जन्म लेता है, तो कोई भी व्यक्ति धर्म के साथ पैदा नहीं होता है। बचपन से आपको जो सिखाया गया है, उसका ठीक से पालन करता है।


1930 के बाद से, रूसियों ने अपने बच्चों को सिखाया है कि कोई दिव्य आत्मा नहीं है, यह समझाने में 25 साल लग गए और फिर उनकी पीढ़ी ने इसे समझा और आज रूस एक नास्तिक देश है, और एक विकसित देश है।
आजकल, अगर कोई भारत के लोगों को प्रेत, दिव्य चमत्कार, आत्मा, भूत के अस्तित्व के बारे में बताता है, तो यह जल्दी से मन में प्रवेश करना शुरू कर देता है। लेकिन इसके विपरीत, अगर कोई सवाल पूछता है या इसे आज़माने के लिए कहता है, तो उन्हें पागल कहा जाता है।
दोस्त ऐसे क्यों होते हैं? इसका उत्तर यह है कि बचपन से ही हमारे मन में आस्तिक संस्कार देना शुरू कर देते हैं। दिव्य शक्ति बचपन से ही हमारे कच्चे दिमाग में निहित हो जाती है, चाहे वह स्कूल में हो या घर पर।
ऐसी संस्कारो में, हम बड़े होते हैं, और हमारे दिल के भीतर यह बात बैठ दी जाती है कि ईश्वर का अस्तित्व है, शैतान है। मन उसे अस्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता है। इसलिए आप उन लोगों के सामने अपने माथे को कितना पीटे, फिर भी वह ईश्वर के अस्तित्व है ऐसा मानते है।
आज भी टेलीविज़न सीरीज़ पर, भगवान, देवी-देवता, काल्पनिकता, अंधविश्वास, चीजों के अलावा कुछ नहीं दिखाया जाता है। इसलिए, आज से ही सभी बच्चों को वैज्ञानिक संस्कार दें ताकि वे अंधविश्वास के जाल में न पड़ें और खुद के लिए निर्णय लेने लगें, किसी दिव्य शक्ति के लिए उस पर निर्भर न रहें।
बचपन में, माँ कहती है, वहाँ मत जाओ और भूत ले जाएगा।
मां बच्चे को सिखाती है’ भगवान के सामने हाथ जोड़ कर मन्नत मागो, “भगवान मुझे पास करा दो”’।
टेलीविजन पर, बच्चे कार्टून में चमत्कार जादू जैसी अवैज्ञानिक चीजें दिखाकर सबका मनोरंजन करते हैं, लेकिन चमत्कार और जादू बच्चों के आंतरिक मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालता है और बड़े होने के बाद भी, मानव के मन में चमत्कार और जादू के प्रति आकर्षण बना रहता है।
स्कूल में विज्ञान पड़ाया जाता है मगर बच्चे इसे रोजमर्रा के जीवन से नही जोड़ते।
एकाधिकार के कारण समाज में 99% लोग धर्म के मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं, इसलिए वे निश्चित रूप से सही होंगे ऐसा, लोगो को लगने लकता है।
? मानव जीवन की भाव भावनाओं में उलझा हुआ है। उसके जीवन में खुशी और दुख लगा रहता है और खुशी की चाहत और दुख को दूर करने के लिए मनुष्य चमत्कारों की रुख करता है।
? हमें ऐसा करना चहिये और हमें वेसा नहीं करना चाहिए। नहीं करोगे तो कुछ गलत हो जायेगा। मनुष्य इनमें से कुछ योगिक घटनाओं को एक नियम के रूप में मानता है और जीवन भर उनका बोझ वहन करता है।
? बार-बार ऑडियो वीडियो इफेक्ट देखना – इसके अनुसार, वह मीडिया के माध्यम से, मौखिक विज्ञापन, सामाजिक उत्सव, आदि के माध्यम से व्यक्ति को चमत्कार बार-बार दिखाया जाता है, जिसे मानव आसानी से मान लेता है।
? ‘डर’ और ‘लालच’ ये दो प्राकृतिक भावनाएं हैं जो हर इंसान के भीतर होती हैं, लेकिन जिस दिन ये भावनाएं मानव जीवन पर हावी हो जाती हैं, तब वह मानसिक गुलामी में फंस जाता है।
? बच्चों को विज्ञान की शिक्षा दे और धार्मिक मासिक गुलामी को समझाने की यथासंभव कोशिश करें । जो व्यक्ति अँधेरे में सोने से डरता है, रात में अकेला जाने से डरता है, उसका मन मानता है कि भूत है और यह विश्वास करता है, भगवान है तो भूत भी है। उनका अंधविश्वास एक तरह का डर है, आस्था नहीं।
हमें भूत प्रेत ईस्वर भगवन को नहीं मानते है तो हमें नास्तिक कहा जाता है, पर “हम लोग न आस्तिक है न नास्तिक है हम तो वास्तविक है” । वास्तव में जो है जैसे पेड़ पौधे, धरती, इन्सान आदि है उसे मन्ना चाहिए ।
आइये भारत को अंधविश्वास से मुक्त करें तभी भारत महासत्ता बनेगा ।