पुनेम — ज्ञान से संबंधित है… गोण्डी लैग्वेज में कहे तो… पुनने (ज्ञान का मार्ग)
ज्ञान माता पिता परिवार से मिलता है
ज्ञान गुरु से मिलता हैं
दोस्तों से मिलता है
पुरखों से मिलता है
हमारे समृद्ध डीएनए से मिलता है…
और ज्ञान(पुन) पर्यावरण(पुरुड़) से भी मिलता हैं….
अर्थात पुरुड़ के सतत् अध्ययन पुनेम कि ओर ले जाता है….
ज्ञान की प्रकृति सभी व्यवहार पुनेम हैं…
हमारी प्रत्येक परंपरा में मरा (वृक्ष) के महत्व को रेखांकित करते हुए…इसे संरक्षित करने का संदेश प्रदर्शित करना ताकि अगली पीढ़ी, यानी मरा (पुत्र) को अनुकूल पर्यावरणीय वातावरण में पाला जा सके।




गडरा पुड़ूय (साल बोरर किड़े)– प्रस्तुत चित्र में साल बोरर किड़े का फोटो हैं जो तेजी से बड़ रहा है जिससे साल के वनों सहित दुसरे प्रजातियों के वृक्षों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है…
गोंडी में इसे गडरा पुडिंग कहा जाता है…उनके प्रभाव से जंगल तेजी से सूख रहे हैं…पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है…मानसून की अनियमितताएं पुड़िय (किड़ो) और पुरूड़ (प्रकृति) बढ़ रही हैं…प्रकृति जो संतुलन बिंदु में टिकी हुई हैं…
गडरा किड़ो को नियंत्रित करने का सबसे बड़ा काम एक पक्षी किद्दिर पिट्टे (कठफोड़वा पक्षी) करती हैं (फोटो में)… खेतों में कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के कारण इन पक्षियों की संख्या लगातार कम होने लगी है। ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ उनके प्रजनन की दर में भारी कमी आई है। अंडे से चूजे समय से पहले मर रहे हैं।
…. इससे आगे चलकर पुरे पृथ्वी को खासकर भारत में एक विकराल पर्यावरणीय समस्या से जुझना पड़ेगा….. किद्दीर पक्षी इस साल बोरर किट के लार्वे और वयस्क किट को खाकर अद्भुत संतुलन स्थापित करती हैं….. यंहा आश्चर्यजनक पहलू यह है कि….गोटूल शिक्षा केंद्र में किद्दीर पिट्टे (कठफोड़वा) और गडरा किड़े को बहुत प्रमुखता देते हुए, उनके संबंध में कई गीत कहानियां प्रचलित हैं।


जब कोयतोरियन कुवांरे युवा लयोर गोटूल से निकल कर वैवाहिक रश्मों पर पहुचता हैं तब भी विवाह मण्डप के लिए मरा (वृक्ष) गाड़ते समय जो गीत गाते हैं उस समय भी इसी किद्दीर पक्षी से जुड़े गीतों को गाया जाता है…. “”मरा (वृक्ष) और मर्री (पुत्र/पत्री) को अनंतकाल तक बचाऐ रखने के लिए किद्दीर पंक्षी का संरक्षण व्यवहार”‘….
क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है … इण्डिजिनस मनुष्यों की प्रकृति की समझ … और गोटूल लयोरो द्वारा इस ज्ञान का प्रसारण … उस ज्ञान का और भी अधिक व्यावहारिक अनुप्रयोग… इसलिए पुन पुरूड़ और पुनेम का मार्ग ही इस पृथ्वी पर मानव समुदाय को सुरक्षित रखेगी… नहीं तो मानव आपस मे हिन्दू- मुस्लिम….ईसाई -यहुदी ..का खून से सने धर्म का खेल खेलकर वह खुद को धरती से अलग कर लेगा….
किद्दीर पिट्टे– गोटूल- पुनेम- पुरूड़ के सहसंबंध के बीच हर वर्ष पुरी दुनिया पर्यावरण बचाने का ढोंग करती हैं बिना अपनी ऐजुकेशन सिस्टम को गोटूल कि तरह व्यवस्थित किऐ बिना…..
आज वैज्ञानिक युग में ज्ञान तो है लेकिन उसके संतुलित प्रयोग का कोई साधन नहीं है।
#मंगलाताई वरिष्ठ समाज सेविका
jai seva