आजादी की लड़ाई में पुरुष ही नहीं महिलाओं ने भी रानी दुर्गावती, फुलकुँवर की परंपरा को बढ़ाते हूए बढ़-चढ़कर अपनी शहीदी दी। जंगल सत्याग्रह के अंतर्गत मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के दुरिया गांव में घास काटकर सत्याग्रह चलाया।

Turia-Jungle-Satyagraha, Turia
Turia-Jungle-Satyagraha


1930, टुरिया जंगल सत्याग्रह – 1927 में जब अंग्रेजों ने इंडियन फारेस्ट ऐक्ट लागू किया तो उसकी वजह से जंगलों में रहने वाले कोयतूर लोगों की आजीविका के सारे स्त्रोत समाप्त हो गये। सब पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस जंगल कानून की आड़ में अंग्रेज वनों में रहने वाले आदिवासी समाज पर कई प्रकार के जुल्म ढाने लगे।

अंग्रेजों के शोषण और अत्याचार से त्रस्त कोयतूरो के सब्र का बांध टूटने लगा था। जब गांधीजी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध नमक कानून तोड़ा, तब देश भर में इस तरह के आन्दोलनों का प्रारंभ हुआ था। इसी क्रम में मध्यप्रदेश में जंगल कानून भंग करने का सिलसिला प्रारंभ हुआ। तब गंजन सिंह कोरकू के नेतृत्व में “जंगल सत्याग्रह” का शंखनाद हुआ। जिसमें महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया और देश के लिये अपना बलिदान दिया।

सिवनी जिले का यही गाँव “टुरिया” उस समय जंगल सत्याग्रह का केंद्र बिंदु बना हुआ था। अक्टूबर 1930 को “टुरिया” गाँव के आसपास के लोग भारी संख्या में सत्याग्रह करने के लिए यहाँ एकत्रित थे जिसमें बहुत बड़ी संख्या में महिलाऐं भी थीं। उस दिन जब जंगल सत्याग्रह कर अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करते हुए लोग गाँव से 1 किमी दूर गोंडी नाले की ओर नारे लगाते हुए आगे बढ़ रहे थे। तब इन आंदोलनकारियों के आगे बंदूकधारी गोरे सिपाही भी चल रहे थे जो इस आंदोलन को कुचलने के लिए आये थे। अंग्रेजों से आजादी दिलाने में कोयतूरो ने दुरिया में जंगल सत्याग्रह करते हुये जंगल का घास काटकर विरोध के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन का बिगुल बजाया था।

मुड्डे बाई ने जंगल सत्याग्रह के माध्यम से सिवनी जिले एवं उसके आसपास के क्षेत्रों में जन-जन के मन में स्वतंत्रता की अलख जगाई थी। पुलिस दरोगा सदरुद्दीन और रेंजर मेहता ने सत्याग्रहियों और उनकी हौसला अफजाई करने आए लोगों के साथ अभद्र व्यवहार किया। जिससे लोग उत्तेजित हो गए। सिवनी के डिप्टी कमिश्नर सीमन ने आदेश दिया टिच देम ए लैशन। जिस पर पुलिस ने गोली चला दी।

इस गोलीकांड में घटनास्थल पर ही तीन महिलाएं- मुड्डो बाई, रैना बाई, देबो बाई और एक पुरुष बिरजू गोंड शहीद हो गए। चारों शहीद कोयतूर थे। इन शहीदों के शव भी अंतिम संस्कार के लिए परिवार वालों को नहीं दिए गए, यह था फिरंगियों के खौफ का सबूत।

इन्हीं के नेतृत्व में कार्य करने वाले क्रांतिकारी कुरई ग्राम घाटकोहका के 3 जांबाज युवा कोयतूर 9 अक्टूबर सन 1930 में जंगल सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेकर साहसिक कार्य किए थे व आंदोलन को सफल बनाने में अहम योगदान दिये थे जिनमें (1) गिरवर सिंह मरावी जी (2) केजू भोई मर्सकोले जी (3) गोदल सिंह उइके जी शामिल है। जांबाज कोयतूर युवाओ का संघर्ष की सत्यता के तहत जंगल सत्याग्रह का वर्णन आज भी कोयतूर बुजुर्ग के द्वारा चर्चा में सामने आती है। 9 अक्टूबर 1930 को किए गए जंगल सत्याग्रह के नायक गोंड, कोरकू और भील आदि आदिवासी थे।

इन अमर शहीदों की स्मृति में ग्राम टुरिया में शहीद स्मारक बना है, जो आगे आने वाली पीढ़ियों को देश के लिए बलिदान होने की प्रेरणा देता रहेगा।

जोहार
जय गोंडवाना

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