

जो लोग 1922 से पहले खुद को हिन्दू कहना पसंद नहीं करते थे, हिन्दू शब्द को अपमानजनक मानते थे और जब औरंगजेब ने सभी हिन्दूओं पर जजिया कर लगा दिया तो ब्राह्मणों ने कहा कि हम हिन्दू नहीं हैं। हम आर्य हैं जो आप जैसे बाहर से आए हैं। इसलिए, ब्राह्मणों को जजिया कर से छूट दी जानी चाहिए और इसके लिए उन्होंने बहुत सारे उदारण दिए और अंत में ब्राह्मणों को जजिया कर से छूट दी गई। हिन्दू धर्म का सच जानने के लिए उनके द्वारा निर्मित किताब।
ब्रिटिश शासन के तहत, ब्राह्मण अंग्रेजों को यह बताते थे कि वे भी इन्ही के समान बाहर से आए हैं। अपने आप को अंगेजी नस्ल का साबित करने के लिए उन्होंने कई किताब लिखी जैसे ‘Discovery of India’_जिसमे जवाहर लाल नेहरु ने आर्यन माइग्रेशन की बात कही है, ‘Arctic Home in the Vedas’-_बालगंगा धर तिलक ने खुद को विदेशी बताते हुए उनका मूल निवास स्थान उत्तरी ध्रुव बताया है । ‘From Volga to Ganga’_राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखा गया है, वोल्गा (Volga) यूरोप की सबसे लंबी नदी है ।
यह पुस्तक बताती है कि आर्य पश्चिम से आए थे लेकिन ये किताबें किसने लिखी जिनके पूर्वज अंग्रेजों के सेवक थे और अंग्रेजों की तरह बाहर से आये थे, यानी युरेसिया (यूरोप–एशिया) ।
केदार _ पांडे ही राहुल _ सांकृत्यायन है जो 9 अप्रैल 1893 को पैदा हुआ ।
केदार_पांडे की शादी 3 बार हुई पहली पत्नी संतोषी, दूसरा मंगोलियाई विद्वान लोला (Ellena Narvertovna Kozerovskaya) की थी । तीसरी डॉ. कमला- नेपाली महिला थी । उनका एकमात्र महान काम संस्कृत और बौद्ध धर्म है, जो भारतीय मिट्टी में अंग्रेजों की मदद से सम्मिलित है ।
गंगाधर रामचंद्र तिलक के पिता बाल तिलक एक संस्कृत विद्वान और ब्रिटिश सरकार में एक प्रसिद्ध शिक्षक थे ।
लक्ष्मी नारायण नेहरू, ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए दिल्ली में एक शास्त्री के रूप में काम किया । उनके बेटे गंगाधर नेहरू (1827-1861), राज कौल का प्रत्यक्ष वंशज (1700 के दशक से 1600 के दशक तक) एक कश्मीरी पंडित थे, वह दिल्ली के अंतिम कोतवाल भी (पुलिस के समकक्ष) थे, इससे पहले 1857 के भारतीय विद्रोह के रूप में काम किये । वह स्वतंत्रता सेनानी मोतीलाल नेहरू और जवाहरलाल नेहरू के दादा थे जो भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, इस प्रकार नेहरू परिवार का हिस्सा था ।


आर्य ब्राह्मण यहाँ के मूलनिवासियो से बहुत शेष्ट है ऐसा बताने की कोसिस करते थे, ऐसा करके वह अंगेजो से फायेदा उठाना चाहते थे । वह इसमें कामियाब भी हुए, अंग्रेजो ने शासन सत्ता आर्य ब्राह्मणों को सोप दी और यहाँ के मूलनिवासियो राजाओ से देश की आजादी व एकता के नाम पे अपना राजपाट देश में विलय करने को कहा । यहाँ के मूलनिवासियो राजाओ ने अपना राजपाट देश में विलय कर दिया । वरिष्ट पत्रकार दिलीप सी मंडल अपने फेसबुक पोस्ट में लिखते है-“ जब अंग्रेजों से यारी दिखानी थी, तब किताबें लिखकर और रिसर्च करके बताया की हम भी यूरेशिया के हैं, यूरोप के हैं । तिलक तो बिना कहीं रुके सीधे उत्तरी ध्रुव में आर्यों का घर तलाश आए । राधाकमल मुखर्जी ने भी अपनी जड़े वहीं बता आए । नेहरु और राहुल सांस्कृत्यायन भी यही कर रहे थे । ऐसा करने से उन्हें बाकी भारतियों के मुकाबले श्रेष्ठ होने का भाव आता था । अंगेजों की तरह यूरोपीयन होने की बात सोचकर ही मजा आ जाता होगा । ‘आर्य भारतीय नहीं,विदेशी है’ ये थ्योरी आर्यों की ही है । जब यह थ्योरी आई तब किसी कुनबी, कोइरी-अहीर-जाटव की थ्योरी लिखने की ओकात ही नहीं थी क्योकि उन्हें पड़ना-लिखना नहीं आता था । पता नहीं आप खुद को कहाँ-कहाँ का बताते हैं और दरअसल है कहाँ के । पता नहीं कल खुद को देश का मूलनिवासी बता दो गे, मिडिया भी आपके हाथ में है तो साबित भी कर दो गे और यहाँ के मूलनिवासियों को विदेशी साबित कर दो गे ।


आज आर्य ब्राह्मण हिंदुत्व को मजबूत करने के लिए प्रयासरत हैं। इसके पीछे की वजह जानना अति आवश्यक है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, आजादी से पहले हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था। उस समय, ब्रिटेन में मतदान का अधिकार उन्ही लोगो को था जो शिक्षित या करदाता थे या जिनके पास बड़ी मात्रा में भूमि थी। लेकिन ग्रेट ब्रिटेन में आम जनता के पास मतदान का कोई अधिकार नहीं था। इसलिए 21 वर्ष की आयु तक पहुंचने वाले सभी लोगों को मतदान का अधिकार देने के लिए एक जन आंदोलन शुरू हुआ, यानी वयस्क मताधिकार होना चाहिए।उस जन आंदोलन के विरोध में, ब्रिटिश सरकार को 1918 से 21 वर्ष की आयु तक के सभी नागरिकों वोट देने का अधिकार मिला ।
जब ब्रिटिश सरकार ने ग्रेट ब्रिटेन में वयस्क मताधिकार लागू किया था, तो भारत में विदेशी आर्यों में घबराहट थी क्योंकि उन्हें लगा कि अंग्रेजी सरकार भारत में वयस्क मताधिकार कानून को लागू कर सकती है और यदि वयस्क मताधिकार लागू होता है। तो केवल 85 प्रतिशत मूल बहुजन समाज की ही सरकार बने गी। 15 प्रतिशत से कम विदेशी आर्यों की सरकार नहीं बनेगी। इसलिए इन लोगों ने फैसला किया कि अब हमारे सामने हिंदू बनने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। इसीलिए 1922 में इन विदेशी आर्यों ने पहली बार हिन्दू महासभा का गठन किया। 1918 की शुरुआत में, ब्राह्मण महासभा का गठन हुआ, जो प्रभावी नहीं था। 1922 में, उन्होंने खुद को हिन्दू के रूप में स्वीकार किया और हिन्दू धर्म का प्रसार करना शुरू किया और हिन्दूओं के ठेकेदार बनकर हिंदुत्व का आविष्कार किया, लेकिन इन विदेशी आर्यों को बहुत डर था कि 1931 की जातीय जनगणना के अनुसार, 35% मुस्लिम और 15% अछूत और 7.5% जनजातियाँ, कुल जनसंख्या का 57.5% इस देश में रहतीहै तो एक सोची समझी रणनीति बनाई जानी चाहिए जिससे शासन किया जा सके । इसलिए एक अलग पाकिस्तान बनाने का विकल्प सही लगा और ये लोग अपनी योजना में सफल भी हुए। परिणामस्वरूप, भारत में केवल 10.5% मुस्लिम ही रह गए और इसकी जनसंख्या बढ़कर 52% + 15% = 67% हो गई, जिसमें ओबीसी भी शामिल हैं।
सन 1947 में अंग्रेज सरकार चली गई और देश आजाद हो गया। तभी से 15प्रतिशत विदेशी आर्य लोग भारत पर राज कर रहे हैं और पूरे साधन और संसाधनों पर इन्होंने अपना कब्जा जमा रखा है । लेकिन, अभी भी इनको एक डर लगातार सता रहा है कि मुस्लिम और दलित यदि एक साथ खड़े हो गए और थोड़ा सा भी जागरूक ओबीसी साथ दे दिया तो हमारी सरकार बनने में बाधा उत्पन्न हो सकती है। इसलिये ये 15 प्रतिशत विदेशी लोग तीन काम एक साथ कर रहे हैं- पहला काम हिन्दुत्व को मजबूत करने के लिए षड्यंत्र करना है, ताकि अधिक से अधिक लोग इसकी विचारधारा से जुड़ सकें। दूसरा काम दलितों को कमजोर करना है ताकि वे अपने जीवन में सरकार बनाने के बारे में सोच भी न सके। तीसरी काम मुस्लिमों के प्रति नफरत फैलाना। अब आप समझ गए होगे की क्यों हिन्दुत्व पर जोर दिया जा रहा है।


यहाँ 15 प्रतिशत विदेशियों ने भोले भाले ओबीसी को हिन्दू और मुसलमानों के नाम पर भड़का कर राजनीतिक रूप से सरकार बनाये है। हमारे लोगों को इनकी इस गुप्त रणनीति को समझना जरूरी है और इस हिन्दुत्व को कमजोर करने एवं 85% मूलनिवासी बहुजनों(एस.सी.,एस.टी,ओबीसी एवं धार्मिक अल्पसंख्यक) की सत्ता स्थापना के लिए संगठित होकर प्रयास करना जरूरी है। यह खेदजनक है कि पिछड़े वर्गों के आरक्षित और सामाजिक न्याय के खिलाफ, संघ के सहयोगियों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने सरकारी संपत्ति को जलाना, तोड़फोड़ करना और नष्ट करना शुरू कर दिया। 1990 में सत्ता में आने वालों को पता होगा कि भाजपा पिछड़े वर्ग लोगो के कितने विरोधी हैं। पिछड़े वर्गों के अधिकारों का विरोध करने वालों से आप कैसे दोस्ती कर सकते हैं? तो 95 फिशादी ओबीसी को पता ही नहीं है कि मंडल आयोग हमारे हित में था, जिसका सवर्णों ने विरोध किया था। मण्डल-विरोधी आंदोलन की कुछ घटनाओं का उल्लेख करना उचित है:
1. जब 7 अगस्त 1990 को, जब वी०पी०सिंह की सरकार ने मण्डल आयोग के तहत अन्य पिछड़ी जातियों को सरकारी पदों पर 27% आरक्षण कोटा देने का फैसला किया तो उच्च जातियों ने वी०पी०सिंह के किलाफ़ नारा दिया: “राजा नहीं रंक है, देश का कलंक है, मान सिंह की औलाद है।” जब बोफोर्स दलाली के मुद्दों पर राष्ट्रीय मोर्चा बनाने के लिए कांग्रेस छोडे तो सवर्ण समाज ने नारा दिया था: “राजा नहीं फकीर है,देश का तकदीर है।”
2. जब 13 अगस्त, 1990 को मण्डल आयोग की अधिसूचना जारी की गई, तो सवर्णों ने देश में उत्पात मचाया, तोड़फोड़, आगजनी और धरना शुरू किया। गाँव के एक तिराहा पर जिसे चोचकपुर-जमानियां-ग़ाज़ीपुर तिराहा कहा जाता है, कुछ सवर्ण जातियों ने पहिया जाम कर दिया,और बाकि लोग जिसमे 95% निषाद, प्रजापति, बढ़ई, लोहार, तेली, बरई आदि थे। जिन्हें पता नहीं था कि ब्राह्मण उन्ही के आरक्षण का विरोध कर रहे हैं।
3. सवर्ण जाति के छात्र बैल, कुत्ता, सुअर, बैल, के पिट पर वी०पी०सिंह, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, रामबिलास पासवान के नाम की पट्टी चिपका कर गाली दे रहे थे। जिस हिंदू धर्म में हम मानते हैं,उसमे पिछड़े लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया गया है –
1.जे बरनाधम तेली कुम्हारा । श्वपच किरात कोल कलवारा ।।
2. लोक वेद सब भाँतिहीं नीचा । जासु छाह छुई लेइअ सींचा ।।
3. कपटी कायर कुमति कुजाति । लोक बेद बाहेर सब भाँति ।।
बुन्देलखण्ड में एक कहावत सवर्णों द्वारा कही जाती है- अहिरम लोधम गड़रं मल्लाहम । बेगुनाहम् बेबिचारम दस पन्नाहम ।।
हिन्दू शास्त्रों में पिछड़े दलितों का इस तरह से महिमामंडन किया गया है। कहावत “अहीर मितईया तब करे,जब कुल मीत मर जाएं।”
सवर्णों द्वारा इसके अर्थ का अनर्थ कर गैर यादव पिछड़ों, दलितों को भड़कया जाता है ।
जबकि इसका असली अर्थ यह है कि जब कोई मुसीबत परेशानी में साथ न दे या कोई मित्र काम न आये तो अहीर/यादव ही मददगार साबित होगा ।