गोंडवाना का राज चिंह नारायण मरकाम दादा की कलम से ✍️✍️✍️👇
#Royal_emblem_of_Gondwana(गोंडवाना का राज चिंह)
कोलकाता अध्ययन यात्रा के दौरान मिला एक विशिष्ट प्रमाण…. जो राज चिंह के दृष्टि से सबसे प्राचीन तम मूर्ति है


#गोंडवाना के इतिहास को हम कई चरणों में अध्ययन करते हैं
(1)पृथ्वी के जन्म के साथ भौगोलिक विकास क्रम में
(2)पृथ्वी पर जीवन के विकास क्रम के आधार पर
(3)पृथ्वी पर मानव विकास के प्राथमिक चरणों में
(4)पृथ्वी पर होमोसेफियंस याने आधुनिक मानव के विकास क्रम में
(5)पृथ्वी पर सभ्यता के विकास क्रम में जैसा कि कांस्य युगीन सभ्यताओं में
(6)पृथ्वी पर लौहयुगीन क्रांतिक दौर में
(7)मध्य युगीन राजा रजवाड़ों के दौर में
(8)औपनिवेशिक साम्राज्य के दौर में
(9)आधुनिक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के द्वारा गड़ी छद्म लोकतांत्रिक सरकारों के युग में……
इनमें से हर चरण में गोंडवाना का अलग ही महत्व है:-
पहले चरण के आधार पर देखें तो भूगर्भिक व भौगोलिक विकास में गोंडवाना लैंड का बनना और उस इरा में अर्थात 55 करोड़ वर्ष से लेकर 18 करोड़ वर्ष पूर्व( late Neoproterozoic (about 550 million years ago) and began to break up during the Jurassic (about 180 million years ago)) …(इस दौर में मानव नाम के समस्या का इस पृथ्वी पर कोई अस्तित्व नहीं था)।
इस दौर के फासिल्स को गोंडवाना फासिल्स के रूप में विशिष्ट अध्ययन किया जाता है…(चित्र नंबर-02,03,04) में गोंडवाना कालीन प्राप्त अवशेषों का कोलकाता में बहुत बड़ा संग्रह है… लाखों की संख्या में जीव जंतु वनस्पतियों का संग्रह .. वाकई आप सभी को देखकर गर्व महसूस होगा …. इतना की गोंडवाना शब्द पृथ्वी के विकास क्रम का शब्द है.. .. यह जीवन की उत्पत्ति और विकास का शब्द है (जाति धर्म के लफड़े से संबंधित नहीं है)।
दुसरी जो चीज मै वर्णित करना चाह रहा हूँ उसे दुसरे चित्र (चित्र नंबर-01) में दर्शाया हूँ…. यह गोंडवाना का राज चिंह #Royal #Emblem of #Gondwana है राज चिंह मतलब गोंडवाना का शासन जहाँ जहाँ रहा उनके मूल शासन दर्शन को प्रतिबिंबित करता है:-
👉👉👉👉क्या प्रतिबिंबित करता है….. हाथी के ऊपर उसके सुंड को प्यार से नियंत्रित करता शेर का चिंह….. अर्थात ऐसे गोंडवाना के शासक जो जनता याने हाथी को बहुत प्यार से शासन करते हैं।
👉👉👉दुसरा … गोंडवाना का शासन एक दौर में इतना शक्तिशाली था कि पृथ्वी के सबसे बड़े (जलीय जीव को छोड़कर) जीव हाथी को कंट्रोल करते हुए शेर का चिंह धारण किये थे… मतलब पुरे पृथ्वी का रक्षक…… ऐसा है “गोंडवाना का राज चिंह”।
👉👉👉👉तिसरा जैसा कि कोया पुनेम का मूल दर्शन है “जीवा पर्रो जीवा पिसयालता ” अर्थात #जैवऊर्जाचक्र में एक जीव की निर्भरता दुसरे जीव में होती है….. सूर्य ऊर्जा का मूल स्त्रोत है जिसे वनस्पति फिर हाथी जैसे शाकाहारी जीव फिर उनके ऊपर शेर जैसे मांसाहारी जीव…… दुनिया ऐसे ही चलायमान है। यह प्रकृति का नियम है, यही यूनिवर्सल ला है और यही गोंडवाना का राज चिंह है।
👉👉👉👉यह #कोयापुनेम के #मूंदशूल_हर्री( तीन दिशाओं/कांटों का मार्ग) सिंद्धांत को भी प्रतिपादित करता है कि इस दुनिया में जीवन की सततता के लिए हिंसा और अहिंसा में संतुलन जरूरी है.(चित्र नंबर 05 तथा चित्र नंबर 06 Kamlesh Markam जी द्वारा प्रदत) … और यह संतुलन हमारे महान गोंडवाना के शासकों ने बखूबी किया था।




इसलिए गोंडवाना के राज्यों का बटवारा टोटेमिक गढ़ों के आधार पर हुआ था जो कि आपस में अक्को-मामाल रिश्तों से गुथे हुए थे….. जिससे प्यार का साम्राज्य प्रसारित हो रहा था।
….. लेकिन इतिहासकार हमारे इन दावों को सिर्फ मध्य कालिन गढ़कंटगा के शासकों तथा उनके 52 गढ़ों तक को ही गोंडवाना राज के अन्तर्गत स्वीकार करते हैं और उनके द्वारा लिखित साहित्य के आधार पर तैयार गढ़ मंडला के शासकों के वंशावली को देखें तो यदुराय तक मतलब प्रथम सदी ईसवी तक वर्णित है पर इसे भी वे सिर्फ वंशावली में वर्णित नाम सुची ही कहकर टाल देते हैं।
इतिहासकार महाराजा संग्राम शाह से ही गोंडवाना के राज को खुलकर समर्थन करते हैं….
जबकि हमारे केबीकेएसडिस्कवर टीम को ही मध्य भारत के अलावा कर्नाटक में (हंपी), (बैंगलोर) तामिलनाडु में मदुरै, तिरूवन्नामलाई, सहित दक्षिण में कई एतिहासिक महलों में गोंडवाना का राजचिह्न प्राप्त हुआ है..इसी तरह सुदूर पूर्व में कोर्णाक में भी गोंडवाना राज चिंह स्थित है इसमें से कोर्णाक को छोड़कर…अधिकांशतः मध्यकालीन शासकों के दौर के ही रहे हैं …पेनवास कंगाली दादा ने तो इस पर बहुत ही विस्तृत जानकारी प्रदान किये है और देश के हर क्षेत्र में मिले गोंडवाना के राज चिंह का वर्णन किऐ है।
लेकिन गोंडवाना के राज चिंह की बात जब भी आती है बाहरी इतिहासकारों में एक अजीब उलझन दिखने लगती है, उनके इन उलझनों को मिटाने के लिए उपरोक्त फोटो में दिया गया राजचिह्न आज से लगभग 2270 साल पहले 250 ईसा पूर्व की है इससे गोंडवाना के राज चिंह का ऐतिहासिक प्रमाण बहुत आगे तक चला गया है।
अर्थात अब हम भारतीय उपमहाद्वीप में गोंडवाना के नजरिये से इतिहास का पुनः अवलोकन कर सकते हैं जो कि आप सभी के सम्मिलित प्रयासों से ही संभव है।
अब तक #गोंडवाना के राज चिन्ह को बहुत ही गलत नजरिये से प्रचारित किया गया मसलन कि यह हिंसक रूप से हाथी के ऊपर बैठा हुआ है… जबकि




☀☀कहीं भी शेर को शिकार करते हुए नहीं दिखाया गया है….
या 🌞🌞🌞 .. पंजों के नाखुनो को हिसंक तरीके से खोले हुऐ नहीं दिखाया गया है….
या 🐤🐤🐤महिषासुरमर्दिनी जैसे खुन बहते हुए बिलकुल भी नही दिखाया गया है
और ना ही हाथी के हाव भाव में कोई दहशत भी नहीं है
और तो और
..🐥🐥🐥. कुछ ने यह भी कहा कि यह स्वागत द्वार के लिए ही था
🐥🐥🐥…. कुछ ने कहा यह सबसे उंची चोटी पर प्रदर्शित करने के लिए ही है
..🐥🐥🐥. कुछ दुसरे शासकों ने भी अपने कमजोरियों को ढकने इसे आगन फागन में कहीं भी लटकाने की कोशिश की
… कुछ ने इसके शेर को हिसंक दिखाने की असफल कोशिश की
पर गोंडवाना का राज तो “गढ़” तांत्रिक टोटम आधारित लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ हमेशा से अडिग रहा था…
जिसमें…जातिवाद, धर्म वाद, पुंजीवाद का कोई झोल नहीं था।
.. जिसमें गोंडवाना की सबसे छोटी इकाई नार्र (गाँव) भी पूर्णतः स्वशासित आत्मनिर्भर इकाई थी इसलिए हम आज भी देखते हैं कि हर गांव में हाथी और शेर का चिंह है
इसके नाम पर रश्म- रिवाज है पंडुम /पर्व है
हर परगना में है
हर गढ़ में है
हर टोटेमिक समुदाय में है… .
भील में है… मुंडा में है… . मीणा में है.. .गोंड में है…. संथाल में है… . कोल आदि सभी टोटेमिक समुदायों में है… . . सभी मूल समुदायों में है.. . क्योंकि सभी मूल समुदाय ऊर्जा प्रवाह चक्र को मानते हैं… . .. विज्ञान के “ज्ञान” का अनुसरण करते हैं… . . जीवा पर्रो जीवा पिसयालता अर्थात एक जीव के ऊपर दुसरी जीव की निर्भरता के यूनिवर्सल ला को मानते हैं… . .. . (क्रमशः… अगले अंको में)
Narayan markam
KBKS डिस्कवरी टीम के साथ कोलकाता डायरी के कुछ पन्ने
#Boom_Gotul_University_bedmamar🌎
[पुनश्च:….इसलिए कांलातर में बना हमारे देश भारत का राज चिंह भी उसी से प्रेरित है…. जिसे भी कुछ लोग हिंसक दिखाने की कोशिश में आज भी लगे हुए हैं]
सेवा जोहार! बुमकाल जोहार! बुरकाल (शेर) जोहार! येन (हाथी) जोहार!!!