

24 मार्च, 2015 मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। न्यायालय ने IT एक्ट कानून के अनुच्छेद 66 ए को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के खिलाफ निरस्त कर दिया। संविधान के अनुच्छेद 19 A के अनुसार, प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। IT act
जस्टिस जे चेलामेश्वर और रोहिंटन नरीमन की अदालत ने सरकार द्वारा कानून के दुरुपयोग पर फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि TI कानून स्पष्ट रूप से लोगों के अधिकार का उल्लंघन करता है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यह कानून काफी अस्पष्ट है। यह भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है।
न्यायालय ने बहुत ही कठोर निर्णय लिया है और इस कानून को असंवैधानिक घोषित किया है। अब इस कानून के तहत किसी को जेल नहीं भेजा जा सकता। इस मामले में याचिकाकर्ता श्रेया सिंघल एक गैर सरकारी संगठन, मानवाधिकार संगठन और कानून की छात्रा थी। अदालत ने याचिकाकर्ताओं के दावे पर फैसला सुनाया कि कानून ने अभिव्यक्ति के उनके मूल अधिकार का उल्लंघन किया है।
याचिकाकर्ता श्रेया सिंघल ने इस फैसले के बारे में कहा: “यह कानून अलोकतांत्रिक था। सरकार नहीं चाहती कि लोग बात करें। यह निर्णय संविधान और जनता दोनों के लिए एक जीत है। अब, कुछ बोलने या लिखने से पहले, किसी को यह डर नहीं होना चाहिए कि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है।”
अब सरकार किसी व्यक्ति को सोशल मीडिया में किए गए पोस्ट के आधार पर गिरफ्तार नहीं कर सकती है, हालांकि सरकार के पास यह अधिकार है कि यदि वह इसे आपत्तिजनक पाता है तो उसे किसी पोस्ट को हटाने का अधिकार होगा। अदालत ने अपने मुकदमे में लोहिया का उदाहरण देते हुए कहा, “भारत जैसे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता है।”