“सेवा” गोंडी शब्द है जो कोयतूर का नैतिक आचरण है। “सेवा” कोयतूर का सत्कर्म के साथ साथ महामंत्र भी है। सेवा शब्द के अर्थ के बारे में कई लोगों में अभी भी भ्रम है। कुछ लोग इसे शिव या शिवा का रूप मानते हैं। कुछ लोग उच्च वर्ग के हित में निम्न वर्ग द्वारा किए गए कार्य या त्याग को सेवा मानते हैं। कुछ लोग मंदिरों में मूर्तियों को फल, फूल, पानी आदि को चडाने को सेवा मानते हैं। ये सभी मान्यताएँ कोया पुनेमी की “सेवा” मान्यता से भिन्न हैं क्योकि सेवा का अर्थ हम हिन्दी में तलासते है जबकि इसका अर्थ हमे गोंडी में तलासना चाहिए ।

sewa-johar
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कोया पुनेम  का मूलमंत्र सेवा जोहर है और मानवीय संबंधों के लिए आदि गुरु पहन्दी पारी कुपार लिंगो के द्वारा कोया वंशजों को दिया गया महामंत्र है। गुरु लिंगो द्वारा निम्नलिखित विधान :-

1. जन्मदाताओं की सेवा

बच्चा जन्म लेते ही सेवा सेवा जैसे सास की ध्वनी आती है।

प्रत्येक प्राणी को इस रचना की पहली झलक देने के लिए दो महाशक्तियाँ हैं। वह सल्लन और गंगरा शक्ति जिसे माता और पिता के रूप में हैं। आज हमारे पास जो कुछ भी है तन, मन और बुद्धि वह उनकी कृपा है।

जब हम पैदा हुए थे तो हम असहाय थे,

न तो चल सकते थे

न भोजन प्राप्त कर सकते थे

न ही वे अपनी रक्षा कर सकते थे।

उस समय, माता-पिता ने जन्म लेते ही बच्चे को संभाल लेते है । अगर माता-पिता की देखभाल नहीं की गई तो उस समय हम जीवित नहीं रह पाते। उन्होंने हमें स्नान कराया, हमारे मल और मूत्र को साफ किया, इसलिए हमारा भी माता-पिता के प्रति कर्तव्य है कि जब वे बूढ़े हो जाएं, तो हम तन, मन और धन की नि: स्वार्थ सेवा करें। वह जो माता-पिता के महत्व को नहीं जानता था वह सजोरपेन को नहीं पहचान सकता।

लोग अपने माता-पिता को छोड़कर और मंदिरों में मूर्ति पूजता है, तीर्थों पर स्नान करना, माता-पिता के इलाज के बजाये कीमती समय बर्बाद करते है। महिलाओं के लिए सास सेवा ही सर्वोपरी है। जिस कबीले में महिलाओं को शादी करके लाया जाता है, उस कबीले के बुजुर्ग उनके द्वारा पूजनीय होते हैं।

2. संतान सेवा

विवाह के बाद बच्चे पैदा होते हैं तथा माता-पिता बच्चे की सेवा के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार होते हैं। यदि माता-पिता अपने बच्चों की सही ढंग से सेवा और परवरिश करते हैं, तो वे भविष्य में होनहार और योग्य नागरिक बनता है, मजबूत और तर्कसंगत बन जाएंगे।

अधिकांश सभ्य शिक्षित लोग अपने बच्चों की सेवा स्वयं नहीं करते हैं और कुछ सारे काम नौकरों से बच्चे की सेवा और पोषण कराते हैं। अधिकांश शहरी माताएँ अपने बच्चों को स्तनपान नहीं कराती हैं और बाजार से दूध खरीद कर पिलाती हैं। परिणामस्वरूप, उनके बच्चे अस्वस्थ, निर्बल, अचेतन, निष्ठुर होते है। इसलिए, कोया पुनेम में सेवा करने का विधान है।

3. सगा सेवा

गोंडी धर्म में सम और विषम गोत्र आपस में सगाजन हैं। इनमें रिश्तेदारों के बीच विवाह संबंध स्थापित होते हैं। गोंडों में परिवार के सदस्यों द्वारा ही सभी धार्मिक और सामाजिक कार्य करने का एक कानून है।

गोंडी समाज में शादी की रस्मों हो या मृत्यु समारोहों अन्य किसी लोग जैसे ब्राह्मणों(से शादी), नाई, धोबी आदि से कोई काम नहीं कराते या अन्य गतिविधियों में सामिल करते है। ये सभी कार्य केवल समाज के सदस्यों द्वारा संपादित किया जाता हैं। इसलिए, परिवार के सदस्यों के बीच सद्भाव और सेवा की भावना आवश्यक है। जनजाति के सदस्य एक दूसरे का गोंगो करते हैं। यदि आवश्यक हो, तो सदस्य एक-दूसरे की सेवा और सहयोग करके पूरे गोंडवान समाज की भलाई में योगदान देते हैं। दुनिया के किसी भी धर्म में इस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था मौजूद नहीं है।  

4. दीन दुखियों की सेवा

गोंड समाज में कुछ अमीर लोग हैं और उनमें से ज्यादातर गरीब हैं। बहुतों की स्थिति तो ओर भी दयनीय है। उन्हें बमुश्किल भोजन मिल पाता है। बीमार होने पर इनको इलाज नहीं मिल पाते। शरीर को ढंकने के लिए पर्याप्त कपड़े उपलब्ध नहीं होते। टूटी हुई घास पूस के झोपड़ी में रहते है। किसी तरह लोग धूप, सर्दी और बारिश से अपनी जान बचाते हैं। अर्थाभाव के कारण, वे अपनी जमीन, बर्तन आदि भी बेच देते हैं।

समाज में अमीर लोगों का यह कर्तव्य बनता है कि यदि कोई व्यक्ति ऐसे गरीब लोगों के लिए समय आने पर यथासंभव सेवा नहीं देता है, तो समाज के व्यक्ति को केवल समाज के लोगो को दान करना चाहिए और उसे पीड़ा से बचाने का प्रयास करना चाहिए। पीड़ितों की सेवा नि:स्वार्थ होनी चाहिए, वे भी हमारे समाज के अंग हैं। जब शरीर का एक हिस्सा विकृत हो जाता है, तो पूरा शरीर अस्वस्थ हो जाता है। शरीर की दक्षता के लिए सभी अंगों का स्वास्थ्य आवश्यक है। उसी तरह समाज में सभी का विकास जरूरी है।

5 – धरती की सेवा

जमीन से अनाज उगाओ, पेड़ लगाओ, फल प्राप्त करो,भूमि को खाकर भूमि को उपजाऊ बनाना भी सेवा है।

गोंडियन का मुख्य व्यवसाय कृषि है। लेकिन आज की परिस्तिथि को देखते हुए कृषि के आलावा दुसरे व्यवसाय की ओर भी रुख कर रहे है।

कृषि कार्य के लिए साहस और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। गोंड भूख, प्यास, ठंड, गर्मी, बारिश, थकान, सब कुछ सहन करके पृथ्वी की सेवा करता है। सुख की आशा में अथक परिश्रम करता है। जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा के साथ धरती माता की सेवा करता है वह कभी भूखा नहीं सोता और कभी भीख नहीं मांगता। भोजन का उत्पादन कर के दुनिया को खिलाता है।

आज, अधिकांश लोग शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी मनचाही नोकरी प्राप्त नहीं पाता हैं। काम की तलाश में समय बर्बाद करते है इसकी जगह खुद का व्यवसाय खोलने के बारे में कार्य करना चाहिए। व्यवसाय भले ही छोटा हो लेकिन वो एक दो पीडी के बाद बड़े कारखाने के रूप में स्थापित हो जाता है, लेकिन कारखाने पेड़-पौधे वनस्पति को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए।

समाज कल्याण के लिए सेवा में कभी कमी नहीं होनी चाहिए। इसे एक पवित्र कार्य के रूप में माना जाना चाहिए, जिस तरह दो सिख एक दूसरे का अभिवादन करते हुए “सत श्री अकाल” शब्द का उपयोग करते हैं, मुसलमान “सलाम वालेकुम” कहते हैं, ईसाई “गुड मोर्निंग” कहते हैं, हिंदू कहते हैं “जय श्री राम” कहते है।

इसी तरह, हम गोंडी धर्मी अभिवादन के रूप में “सेवा जोहर” कहते थे।  

? सेवा गोंडवाना सेवा रावेन ?  

तिरु किशोरदादा वरखडे

नेशनल गोंड़वाना युथ फ़ोर्स ??????


गोंडवाना या गोंडी धर्म में 750 का मतलब

गोंड – गौंड – गौण जिसका मूल शब्द ‘गण्ड’ है

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