

17 अगस्त, भोजपुर : मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के भोजपुर पेनठाना परिसर में कोयतूर समाज के सतरंगी झंडा एवं सल्ला गागर की प्रतिमा को असामाजिक तत्वों द्वारा 10 अगस्त को निकाल दिया गया था, जिसके विरोध में 17 अगस्त को प्रदेश भर के कोयतूर गोंडवाना महासभा के हजारों की संख्या में कार्यकर्ता भोजपुर पेनठाना पहुंचे।
एड० सुनील कुमार कोयतूर ने कहा “भोजपुर भोपाल की एक नगरी थी जिसकी रानी कमलापति थी। भोजपुर उनका एक नगर और एक किला है जिसको लेकर विगत कुछ दिनों पूर्व यहां पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा कोयतूर धर्म बड़ापेन की प्रतिमा को तोड़ दिया और झंडा को अपमान पूर्वक निकाल कर फेंक दिया। जिसके विरोध में कोयतूर अपनी बात रखने के लिए प्रशासन के सामने आया है और कोयतूरो के ध्वजा का जो अपमान हुआ है उस अपमान को सम्मान के स्वरूप में बनाने के लिए कोयतूर समुदाय इकट्ठा हुआ। जिसमें प्रशासन से हमारी माँग थी सतरंगी झंडा को पुनः भोजपुर पेनठाना पर स्थापित किया जाए।
हमारे जो आराध्य बड़ापेन की प्रतिमा स्थापित हो, साथ ही कोयतूर ध्वजा का जिनने अपमान किया बड़ापेन प्रतिमा को क्षति पहुंचाई उन लोगों पर एट्रोसिटी एक्ट लड़ाई और दंगा भड़काने को लेकर केस और मुकदमा दर्ज हो। प्रशासन ने हमारी इस मांग को माना और हमने पुनः सतरंगी झंडा को यहां लहराया। इसमें यहां के स्थानीय कोयतूरो का भरपूर सहयोग मिला और आज हमारा कोयतूर समुदाय पुनः सतरंगी झंडा लहरने पर खुश हैं। प्रशासन ने भी हमसे 8 दिन का समय लिया है, जिन असामाजिक तत्वों ने जो धर्मध्वजा का अपमान किया जो बड़ापेन की मूर्ति को तोड़ा उन पर सख्त से सख्त कार्रवाई करने का आश्वासन दिया।”
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कुनाल सिंह ककोडिया, सामाजिक कार्यकर्ता का कहना है “भोजपुर की जो विरासत खड़ी हुए है जो पुरातत्व विभाग की विरासत में है, यह हमारा इतिहास है उसे पुरातत्व विभाग ने इसका इतिहास गलत लिखा है। ये दरअसल गोंडवाना कालीन गढ़ किला हैं वो गोंडवाना की विरासत है इस पेनठाना में गोंडवाना राज्य चिन्ह अंकित है, इसलिए हमने झंडा फहराया है और हमने 9 अगस्त को जो झंडा फहराया था उसे असामाजिक तत्वों द्वारा 10 अगस्त सुबह को निकल दिया गया था। जिसके विरोध में आन्दोलन किया गया। अभी तक प्रशासन की तरफ से कोई संतुष्टि नहीं मिली है। एक खाली दिलासा दी गई है लेकिन फिर भी हमारा प्रयास जारी रहेगा क्योंकि ये हमारी जो विरासत है इसके लिए हम जी जान से लगा देगे।”
राजकुंवर सूर्यजीत सिंह, जयस जिला अध्यक्ष रायसेन ने कहा “हमारे आराध्य बड़ापेन का सल्ला गागर इस प्राचीन भोजपुर पेनठाना में स्थापित है। जिसका हम गोंगो करते हैं, पूरे कोयतूर समाज के लोग अपनी आवाज उठाई और प्रतिमा को स्थापित किया और यहां पर कोयतूर समाज का गोंडी धर्म का जो ध्वज है वो भी यहां पर हमेशा से लहराता रहा है लेकिन कुछ असामाजिक तत्वों ने वो झंडा निकाल के फेंक दिया और हमारी स्थापित प्रतिमा को छतिग्रस्त कर दिया। जबकि हम सबको पता है कि भोपाल शहर का एक प्राचीन हिस्सा भोजपुर पेनठाना है। गौंड राजा भूपाल शाह सल्लाम के शासन काल ने भोपाल नगर बसाया और उन्हीं के शासन काल मे ये पेनठाना बनवाया गया था उसका प्रत्यक्ष प्रमाण आज भी यहां है। जिसे के निशान आप शिवलिंग के नीचे जो सीढ़ियां बनी हुई है वहां पर हाथी पर सवार शेर निशान जो गोंडवाना राज्य चिन्ह है वहां पर बना हुआ है।
इतिहास करो ने हमारे इतिहास को उल्टा पुल्टा करके गलत तथ्यों को इसके लेख में बताया गया है कि यह परमार वंश द्वारा यह मंदिर बनवाया गया और परमार वंश के राजा के द्वारा भोपाल नगर बसाया गया जोकि ये बिलकुल गलत है। अगर ऐसा होता तो फिर हमारा गोंडवाना राज्य चिन्ह पेनठाना में सीढ़ियो के नीचे नही होता।”
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मनोज शाह उइके, जयस कार्यकर्ता ने कहा “प्रशासन का कर्तव्य है जहाँ असामाजिक तत्वों द्वारा गलत कार्य हो उसको रोके, उन्हे ये ड्यूटी निभानी पडेगी। लेकिन हम भी संवैधानिक रूप से लड़ते हैं जिसे हमे बाबा साहेब द्वारा अधिकार मिला है। उन्होंने संविधान बनाकर अपना कर्तव्य निभाया उनका धन्यवाद भी अर्पित करते हैं। अपने संगठन को भी धन्यवाद देता हूं जो अपने सम्मान के लिए आज यहाँ भोजपुर पेनठाना में आए। हमारे समाज को आगे बढाने के लिए और अस्तित्व की रक्षा के लिए फिर से अपना झंडा लहरा दिया है। भोजपुर में हमारा प्राचीन किला महल पेनठाना भूपाल शाह सल्लाम के शासनकाल में बना था और ऐसे कई हमारे धरोहर बचे हुई है। उन धरोहर की रक्षा के लिए कोयतूर समाज असंगठित है और उनकी रक्षा के लिए हम लोग प्रतिबद्ध हैं । कोई भी यदि हमारे धरोहरों पर आंच पहुँचता है तो हम हमेशा तत्पर रहेंगे।
कोयतूर समाज धरोहर की रक्षा के लिए तत्पर रहेगा और जीतने भी हमारे किले गढ़ है उन्हें हम वापस लेगे क्योंकि गोंडवाना सम्राज्य मध्यप्रदेश का ही नहीं अपितु पूरा भारत गोंडवाना लैंड का एक हिस्सा है जब से पृथ्वी में गोंडवाना लैंड पांच भागो में बटा है। तब से गोंडवाना काल के कई पेनठाना, गढ़ बनते आया है लेकिन कुछ असामाजिक तत्व या देशविरोधी लोग हैं वे नहीं चाहते कि यहां पर भाई चारा स्थापित हो हम इस देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
भारत का संविधान कहता है भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। धर्म को बढ़ावा न दें बल्कि सभी भाई चारे से मिलकर रहे तथा संस्कृति को बढावा दे। लेकिन यदि कोई धूर्त कृत्या करोगा तो हम लोग चुप नहीं बैठेगे। हम लोग लडना भी जानते और लिखना भी जानते है क्योंकि हम लोग अब संविधान पड़ने लगे हैं।”
रवि धुर्वे कोयतूर गोंडवाना महासभा अध्यक्ष म०प्र० का कहना है “हां हमारा सामाजिक सतरंगी ध्वजा है जो हम लोगों ने 9 अगस्त को चढ़ाया था विश्व मूलनिवासी दिवस पर अगले दिन 10 अगस्त को हमें पता चला कि झंडा शासन के द्वारा या विभाग के द्वारा या किसी अन्य कृत्य से उतार दिया गया उसके बाद में हम लोगों ने पुलिस थाने में जाकर इस चीज की कम्प्लेन कराई तो हम लोंगो पता चला कि कहीं न कहीं यह कार्य यहां के जो महंत थे उनका है। साथ ही साथ यहाँ शासन प्रशासन का भी सहयोग रहा और फिर हमने रैली का आवाहन किया जो धार्मिक सतरंगी झंडा के अपमान के विरोध में, कहीं न कहीं भारत के संविधान में हमें हर धर्म को अपनी स्वतंत्रता के अनुसार गोंगो पाठ करने का अधिकार है लेकिन इन असामाजिक तत्वों ने कहीं न कहीं बगैर हमे सूचित किए। हमारा झंडा उतारा जिसके लिए हमने आंदोलन किया। साथ ही साथ में आज प्रशासन ने भी सहयोग किया।
पुरातत्व विभाग ने हमको यहां पर झंडा लगाने की अनुमति दी। साथ ही कुछ दिनों बाद यहां एक चबूतरा का निर्माण भी होगा और यहां पर जो भी कृत्य हुआ जिसने ये झंडा उतारा कलेक्टर महोदय की तरफ से हमें आश्वासन दिया गया है कि बहुत जल्दी एट्रोसिटी एक्ट उसके ऊपर लगेगा और जितने भी लोग हैं उनके ऊपर कड़ी से कड़ी कारवाई होगी और साथ ही साथ हम लोगों ने धर्मशाला की मांग भी रखी और भी कई मांगे रखी हुई हैं वो जल्दी ही प्रशासन पूरा करने का आश्वासन दे रहे।”
रिपोर्टर ” आप को कहा गया था की झंडा लागा लो या एक एकड़ जमीन ले लो।”
रवि धुर्वे ने कहा “ये लड़ाई हमारी धार्मिक अस्मिता की लड़ाई है। जमीन तो हर कहीं मिल जाएगी और जमीन हमारा समाज कहीं पर भी एक-दो एकड़ दान कर देगा । हमारे समाज के पास जमीन की कमी नहीं लेकिन ये लड़ाई अस्मिता की लड़ाई थी, गोंड वंश की अस्मिता की लड़ाई थी। गोंड वंश का किला राजा भोज ने बनवाया रानी कमलापति शासन में और उसके बाद भी हम लोग एक सतरंगी झंडा चढ़ाने की अनुमति न मिले। ये अस्मिता की लड़ाई थी जिसके कारण में हम लोगों ने वो जमीन को नहीं लिया।”