Rana Poonja Bhil
Rana Poonja Bhil

राणा पूंजा भील भोमट के राजा थे। वह अपनी बहादुरी कुशल नेतृत्व और देशभक्ति के लिए जाने जाते हैं।

# राणापूंजाभील अरावली पर्वतमाला में स्थित भोमट क्षेत्र के राजा थे। उन्होंने मजबूत सेना का गठन कर रखा था। उनकी शक्ति को देखते हुए ही,मुगल शासक अकबर के संरक्षक बेरम खां और मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप, राणा पूंजा भील के पास सहायता लेने पहुंचे । भीलो की सहायता से ही हल्दीघाटी युद्ध 24 वर्षों तक चला । यह राणा पूंजा भील के योगदान के कारण ही मेवाड़ के प्रतीक चिन्हों में अंकित है, साथ ही पुरस्कार राणा पूंजा के नाम से वितरित किया गया है। कॉलेजों और स्कूलों की भी स्थापना की गई है।

# आरंभिक_जीवन

राणा पूंजा भील राजस्थान के उदयपुर जिले के ग्राम पुनखा के निवासी थे। राणा पूंजा का जन्म 5 अक्टूबर पानरवा के मुखिया दूदा होलंकी के परिवार में हुआ था इनके दादा राणा हरपाल थे।

उनकी माता का नाम केहरी बाई था, उनके पिता की मृत्यु के बाद, 15 वर्ष की उम्र में, उन्हें पानरवा के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था।

यह उनकी योग्यता की पहली परीक्षा थी, वह जल्दी से इस परीक्षा को पास करके ‘भोमट के राजा’ बन गए। अपनी संगठनात्मक ताकत और लोगों के लिए प्यार के कारण, उनकी ख्याति पूरे मेवाड़ में फैल गई, वह “वीर भील” नायक बन गए।

Rana Poonja Bhil Photo
Rana Poonja Bhil Photo

# हल्दी घाटी का युद्ध

1576 ई. में मेवाड़ में मुगलों का संकट उभरा। सोलहवी शताब्दी में दिल्ली के मुस्लमान बादशाह अकबर ने राजस्थान के मेवाड़, उदयपुर, चित्तोड आदि पर आक्रमण किया ।

राणा_पूंजा मेवाड़ के एक वीर भील योद्धा थे, मेवाड़ तक पहुंचने के लिए मुगलों को राणा पूंजा के क्षेत्र से होकर जाना था लेकिन राणा के राजकीय क्षेत्र से होकर जाना आसान नहीं था, इसलिए तत्कालीन समय के सबसे ताकतवर राजा के नितिकार एवं संरक्षक बैरम खां और मेवाड़ के महाराणा प्रताप दोनों ही भोमट के राणा पूंजा के पास सहयोग लेने पहुंचे।

जब मुगलों ने राणा पूंजा को धन-दौलत देकर मुगल सम्राट अकबर का समर्थन करने के लिए कहा, तो महाराणा प्रताप ने राणा पूंजा के सामने बप्पा रावल की तलवार को मेवाड़ का समर्थन करते हुए, देशभक्ति के रास्ते पर चले को कहा।

राणा पूंजा भील ने मुगलों से मुकाबला करने के लिए मेवाड़ के साथ खड़े रहने का निर्णय किया। महाराणा को वचन दिया कि राणा पूंजा और सभी भील भाई मेवाड़ की रक्षा करने को तैयार रहेगे। इस घोषणा के लिए महाराणा ने राणा पूंजा को गले लगाया और अपना भाई कहा, 1576 ई. के हल्दीघाटी युद्ध में राणा ने अपनी सारी ताकत को देश की रक्षा के लिए झोंक दी । हल्दीघाटी युद्ध में भीलो के राणा पूंजा ने अहम भूमिका निभाई। युद्ध के अनिर्णित रहने में गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का ही करिश्मा था, जिसे राणा पूंजा भील को नेतृत्व करने का मौक़ा मिला।

अकबर ने महाराणा प्रताप पर हमला बोल दिया लेकिन आदिवासी राणा पूंजा ने अपने दस हजार फ़ौज के साथ हल्दीघाटी देबारी में सम्राट अकबर की फ़ौज को रोका और महाराणा प्रताप की जान बचाई । मुग़लों के आक्रमण को विफल करने में भीलों की शक्ति का अविस्मरणीय योगदान रहा। इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप राणा पूंजा के साथ रहे। यही नहीं इस भील वंशज सरदार की उपलब्धियों और योगदान से महाराणा प्रताप की माँ ने पूंजा को दूसरा बेटा मानकर उन्हें ‘राणा’ की उपाधि दी गई। अब राजा पूंजा भील ‘राणा पूंजा भील’ कहलाये जाने लगे।

Mewar raj chinh
Mewar raj chinh

राणा के इस योगदान को युगों-युगों तक याद रखने के लिए, योग्य शौर्य के संदर्भ में ही मेवाड़ के राजचिन्ह में भील प्रतीक अपनाया गया है जिसमे एक ओर राजपूत (राणा प्रताप) तथा एक दूसरी तरफ (राणा पूंजा भील) भील का प्रतीक अपनाया गया है।

# हल्दीघाटी युद्ध में योगदान:-

आज जगह जगह देशभर में ‘महाराणा प्रताप’ के सम्मान में स्मारक बने है, लेकिन ‘राणा पूंजा भील’ के इस गौरवशाली इतिहास को हमेशा दबाया और नकारा जाता आ रहा है।


छत्रपति शाहूजी महाराज : जयंती 26 जून

राजा शंकरशाह एवं कुंवर रघुनाथशाह मडावी बलिदान दिवस

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here