

राजा नरवर शाह जी
गोंडवाना राजवंश के अमर शहीद, महान आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी, अप्रतीम शौर्य, प्रजा हितैषी एवं परोपकारी, निडरता और बलिदान की प्रतिमूर्ति, चीचली-ढिलवार के जागीरदार, वीर योद्धा, सन् 1842 बुंदेला विद्रोह और 1857 में भारतीय स्वतंत्रा के नेतृत्वकर्ता, स्वतंत्रता संग्राम में आजादी के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले, बुंदेला राजा, माटी के सपूत अमर शहीद “राजा ठाकुर नरवर शाह जी” को शत् शत् नमन
‘राजा डेलन शाह’ चिचली क्षेत्र के वीर नरवर शाह से मिले। वे एक कुशल योद्धा थे, इसलिए राजा डेलन शाह उन्हें अपने साथ मदनपुर ले गए। वहां उनके बीच गहरी दोस्ती थी। 1842 के क्रांति ‘बुंदेला विद्रोह’ में राजा नरवर शाह ने ढिलवार में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। वह आसपास के इलाके में काफी मशहूर थे।
1842 की क्रांति के दौरान 18 महीने अंग्रेजों को नरसिंहपुर में घुसने नहीं दिया था। अगस्त 1857 को राजा डेलन शाह और राजा नरवर शाह के नेतृत्व में भोपाल तथा सागर के विद्रोहियों ने तेंदूखेड़ा नगर तथा पुलिस थाने को लूटकर क्रांति की शुरुआत करी।
18 नवंबर, 1857 को कैप्टन टर्नन ने राजा डेलन शाह राजा नरवर शाह के ढिलवार किले को जला दिया। डेलन शाह और नरवर शाह किले से निकल कर जंगल में छिप गए जिससे वे पकड़े नहीं जा सके। राजा नरवर शाह का एक भतीजा पकडा गया और उसे फांसी पर लटका दिया गया।
9 जनवरी 1858 को भोपाल और राहतगढ़ से लगभग 4000 हजार विद्रोहियों ने जिनमें सागर के बहादुर सिंह, भोपाल के आदिल मोहम्मद खान, अन्य नेताओं के अधीन 250 घुड़सवार पठान, नरवर सिंह और मदनपुर के डेलनशाह शामिल थे, इन्होंने तेंदूखेड़ा पर पुनः आक्रमण किया। इस प्रकार 8 जनवरी में तेंदूखेड़ा पर 3000 या 4000 विद्रोहियों ने आक्रमण किया, इसमें 12 विद्रोही दल ने तेंदूखेड़ा तथा इमझिरा पर पुनः कब्जा कर लिया। तब नरवर शाह की को पकडवाने पर 500 रुपिया का इनाम रखा गया लेकिन किसी की सफलता नहीं मिली।
अनेक छुटपुट झड़पों के बाद धोखे से राजा डेलन शाह और नरवर शाह को अंग्रेजो द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। अंतः राजा नरवर शाह व राजा डेलन शाह को कैद कर लिये गया। 16 मई, 1858 को मातृभूमि के लिए शहीद हो गए, उन्हें उनके ढिलवार किले के पीछे बरगद के पेड़ पर फाँसी दे दिया गया।
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