

निजीकरण
आज, निजीकरण के कारण, सभी भारतीयों के बच्चे जो अच्छी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं,वो पूँजीपतियों के यहाँ 5000 नौकर होंगे। संविधान सभा में इस बात पर विस्तार से चर्चा की गई कि निजी क्षेत्र को या सार्वजनिक क्षेत्र / सरकारी क्षेत्र को देश में बढावा देना चाहिए। संवैधानिक मसौदाकारों ने निर्णय लिया कि देश में व्यापक असमानता है इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र को /सरकारी क्षेत्र को बढावा देना चाहिए, क्योंकि संविधान सभा के साथ और संविधान के अनुच्छेद 37, 38, 39 में सहमति व्यक्त की गई है, न केवल सरकारी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए, बल्कि निजीकरण को प्रोत्साहित नहीं देने के लिए।
यह संविधान में प्रदान किया गया है कि सरकार कोई नीति नहीं बनाएगी ताकि देश का धन, कुछ लोगों के हाथों में इकट्ठा हो जाए, जिसके बाद 42 वें संविधान संशोधन आया जिसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दिया गया था। इस मामले को गोरखनाथ मामले के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि निजीकरण के बजाय, सरकारी क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाना चाहिए असमानता को खत्म करने के लिए ।
यही नहीं, माननीय सर्वोच्च न्यायालय इंदिरा साहनी के फैसले में, संविधान के इन लेखों को व्यापक जनहित में मानते हुए, बिल्कुल सही मना। संविधान के इन लेखों के कारण, केंद्र सरकार कोई कानून नहीं बना सकती है। यदि निजीकरण हुआ तो 135 करोड़ लोगो के देश के खिलाफ हैं। जबकि आज सरकार सार्वजनिक क्षेत्र को निजी के हाथों में बेच रही है और ऐसी स्थिति में, विदेशी कंपनियां भी भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर खरीदी कर सकती हैं और देश को गुलाम भी बना सकती हैं।
इसलिए यह भी अनुच्छेद 300 का उल्लंघन है और विश्व बैंक की कई रिपोर्टों में, यह भी स्पष्ट हो गया है कि निजीकरण से देश में असमानता पैदा होती है, निजी उद्योगों में लोगों को पूर्ण वेतन नहीं मिलता है। अधिकारीयों और कर्मचारियों से अतिरिक्त काम कराती है नहीं करने पर तुरन हटा कर सड़क पर ला देती है। पेंशन और स्वास्थ्य जैसी कई बुनियादी सुविधाओं से वंचित भी होते है। जबकि सरकारी क्षेत्रों में पेंशन, भविष्य निधि और चिकित्सा सुविधाएं और बिमा आदि की कई सुविधाएं प्रदान करते हैं और काम के घंटे निर्धारित रहते हैं। हालांकि, निजी क्षेत्र में किसी तरह की कोई गारंटी नहीं है।
पूंजीपति लोग लोगो से जबरन श्रम कराएगी, जबकि संविधान जबरन श्रम पर प्रतिबंध लगाता है, जबकि निजीकरण 1947 से पहले देश में हो रहे जबरन श्रम को फिर से लागू करेगा, जब संसाधन की कमी थी तब सरकारी क्षेत्र को विकसित करने के लिए निर्णय लिया गया था और आज देश में सब कुछ होने के बावजूद, सरकारी क्षेत्रों को कौड़ियों में बेचा जाता है और निजी हाथों में सौंप दिया जाता है, जिसका देश के संविधान द्वारा खुले तौर पर उल्लंघन किया जा रहा है और जिससे जन जीवन दांव पर है।
संगठित रहो संघर्ष करो
मात्र उपयोगी नहीं राष्ट्र उपयोगी बनो
शांति से कार्य संभव नहीं क्रांति का आगाज करना होगा!
मात्र जुबानी इंकलाब नहीं जमीन इंकलाब लाना होगा
*निजीकरण धोखा है धक्का मारो मौका है *
स्वार्थ नहीं परमार्थ को जानो