

गोंडो के ग्राम देवता ‘नाटेंडोर मेढ्याल पेन’ है जिसे गाँव का रक्षक माना जाता है। गोंडो कि यह परंपरा हजारो सालो से है किंतु आज कई गोंडो को इसकी जानकारी नही है। इसे पोला के नाम से जानते है। लोग अन्य धर्मो के त्यौहार जिसे हम अखबारों, टीवी में देखते है कही न कही वह हमें प्रभावित करते है। हम अपने रिवाज परंपरा एवं सामाजिक नेग न बनाने के कारण कोया पुनेम को भुलान लगते है।
‘पोला’ यह शब्द हिंदी है किंतु हिंदी के जानकार को पूछिए कि पोला का अर्थ क्या होता है। वह नही बता पायेगा क्यूँकि यह शब्द हिंदी या मराठी का मुल शब्द नही बल्की यह मुलत: कोंदा पंडुम शब्द है जो की गोंडी पंडुम शब्द का अपभ्रशीत शब्द है। इसे टोटेमिक व्यवस्था कि याद मे मनाया जाता है। सभी गोंड अपने गोत्र टोटेम बाना को याद करते है और अपने टोटेम कि रक्षा करते रहे इसलिये संभू के इस टोटेम को सर्वांगीण रूप से याद कर गोंगो करते है।
इसके पीछे प्रकृती संतुलन का विचार है। किंतु हिंदू लोग इसे पोला याने बैल जो कि हमारे खेती मे काम आता है और उसकी साल मे एक बार तो भी पूजा करनी चाहिए, इतना ही मतलबी अर्थ निकालकर बैल को पुजते है। पूजना गलत नही किंतु जानकारी सही होना जरुरी है। ‘कोंदाल पंडुम’ में ‘कोंदाल’ निकाल दो तो सिर्फ ‘पंडुम’ रखा जाए जो पोंडा और उसके बाद पोडा हुवा…. अब पोला हुवा….इसी को अब पोरा बोलने लगे है। सच तो यह है कि गोंडी मे ‘पंडुम’ याने ‘पर्व’ होता है।
‘नाटेंडोर मेढ्याल पेन’ याने गाँव का रक्षक। ‘मेढ्याल’ का अर्थ होता है ‘रक्षक’ और मेढ्याल गोंडी शब्द है। ‘नाटेंडोर’ का मतलब ‘गावका’… ऐसा कुछ मिलाकर ‘नाटेंडोर मेढ्याल’ कहा जाता है। ‘कोंदाल पंडुम’ मे गोंड लोग ‘पलाश’ पेड़ कि डालीया अपने मुख्य द्वार पर रखा करते है ताकी कोई बिमारीया, गलत छाया या तत्सम बाते अंदर न आये या घर से चली जाये। ‘पलाश’ कि डालिया जो रखी जाती है उसे मेढी कहते है और इसे ‘मेढ्याल पेन’ कि याद मे रखा जाता है। आज के जमाने मे भले ही यह अजीब लगता हो किंतु यह हमारी गोंडी परंपरा है। इसका शास्त्रीय कारण भी है किंतु यह कारण कोई गोंडीयन जानकार ही बता सकता है।
‘नाटेंडोर मेढ्याल पेन’ का दुसरा नाम ‘मारोती’ है और इस मारोती का संबंध भी आरोग्य से है। इसकी बहन का नाम भी मारबत है, ‘कोंदाल पंडुम’ के दुसरे दिन गोंड लोग इस मारबत का गोंगो करके उससे अपने आरोग्य सम्पादकीय वाच करते है। असल मे मारबत यह शब्द भी गोंडी है मार + बत ऐसा संधि-विक्षेत किया तो गलत है क्यूँ कि इसका कोई अर्थ नही। मेढ्याल पेन कि बहन मुरबत है। मुर याने पलाश का पेड़ और ‘बत’ याने डाली। मुरबत का मतलब पलस के पेढ कि डाली। मुरबत का अब मारबत किया गया है।
‘नाटेंडोर मेढ्याल पेन’ का दुसरा नाम ‘मारोती’ है। आपको पता होना चाहिए कि यह मारोती शब्द हिंदी या मनुवादी नही। गोंडो मे मारोती को वृक्षोत्पन्न वायुरूप माना जाता है। वृक्ष से उत्पन्न और वहन करने वाला मारोती होता है। मारोती मे मरा +ओती ऐसे गोंडी शब्द बसे है। मरा यह शब्द मानवी शरीर और पेढ के लिये प्रयुक्त किया जाता है।मानवी शरीर का संचालन करने वाला पेन याने मारोती होता है अर्थात मारोती शक्तिशाली प्रजोत्पादक दैवत इस अर्थ से भी गोंडो मे प्रयुक्त होता है। उसका दुसरा नाम ‘नाटेंडोर मेढ्याल पेन’ है। मारोती का मतलब ब्रह्मचारी कदापि नही क्यूकी ब्रह्मचारी को गोंडी मे लंगड्या कहते है और न ही इस लांगड्या का मारोती से कोई मतलब नही।
दोस्तो गोंडी महान है हमने उसे भुलाकर अपने अस्तित्व को खो दिया है। गोंडो का सच्चा इतिहास हमारे भाषा मे है। हमारी परंपरा हमारी भाषा से उजागर होती है। हमारा रिवाज कैसे है यह सिर्फ गोंडी भाषा से पता चलता है। किंतु आज हम आदिवासी बने है, इसके कारण हम गोंडी के बारे मे सोचने का वक्त नही मिलता।
जब से हम आदिवासी बने है तब से हमने गोंड गोंडी गोंडवाना कि अहमियत को पहचानना छोड़ दिया है। आज कई लोग गोंडी बोलाने वाले है किंतु उनकी गोंडी कभी अपना इतिहास उजागर नही कर पायी। बस बोलना आता है इसलिये बोल लेते है किंतु इतिहास कि ओर मुह मोड़ा करते है। किंतु बोलने से ज्यादा मुझे जितनी गोंडी आती है उसे अपने इतिहास में धुंडने का प्रयास करता हु।
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मारोती उईका
वर्धा
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