कथावाचक और ब्राह्मणवाद
ब्राह्मणवाद को स्थापित करने में कथावाचक (मौखिक या लिखकर) का बहुत ही बड़ा योग्यदान रहता है।


ये कथावाचक दो प्रकार के होते हैं।
पहला कथावाचक ब्राह्मण समुदाय से होता है जो मिथ्या कथा वाच कर जीवकोपार्जन करता है और ब्राह्मणवाद को बढ़ाने में गति भी प्रदान करता है। ऐसे कथावाचक की मंशा भी होती है कि ब्राह्मणवाद यथावत फलता-फूलता रहे ताकि मेरा और मेरे सभी पीढ़ी को अनाड़ी वर्गों से मिलने वाला दान, मान, सम्मान और राजनैतिक पहचान बना रहे, और अनाड़ी वर्गों पर मेरा और मेरे पीढ़ी का मानसिक सत्ता स्थापित रहे।
परंतु वहीं


दूसरा कथावाचक गैर ब्राह्मण समुदाय से होता है, जो ब्राह्मणों के विरुद्ध राजनैतिक कथा वाचकर राजनैतिक मुकाम या अपनी पहचान वाली मुकाम हाशिल करना चाहता है या कर भी रहा है।
परंतु अपने घरों में ब्राह्मणवादी कर्मकांड को छोड़ता नही है।
जब ऐसे गैर ब्राह्मणवादी कथावाचक के घर में शादी-विवाह या कोई विशेष प्रकार का प्रयोजन होता है तो
उसी ब्राह्मण पुरोहित के बनाये कर्मकांड में पड़कर ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देता है।


फिरक्या? ऐसे गैर ब्राह्मणी वर्ग द्वारा प्रतिदिन ब्राह्मणवाद के विरुद्ध कथा वाचना या कथा लिखना और अपने घरेलू प्रयोजन में ब्राह्मणवाद का जमकर उपभोग करना, ऐसे दोहरेचरित्र रखने से कभी भी ब्राह्मणवाद का खात्मा या उसमें रत्ती भर भी कमी नही हो सकती है।
उसके लिए
ऐसे गैर ब्राह्मणवाद के कथावाचक जब तक अपने घरों में होने वाले प्रयोजन पर सम्यक_संस्कृति का उपयोग नही करेंगे, तब तक ब्राह्मणवाद का खात्मा होने को नही है।


नोट:- कथावाचना तो एक कला है और कला दिखाने वाले को नाटककार कहते हैं और नाटककार तो मनोरंजन करता है।