

16 सितम्बर 2021, खूंटी : ?करम पर्व के बिना झारखंड की आदिवासी संस्कृति अधूरी है?
करम पूर्व संध्या का मुख्य अतिथि – बरखा लकड़ा, पदमश्री मंधू मंसूरी जी।
विशिष्ट अतिथि – खूंटी जिले के उप उपायुक्त और डीएससपी।
कोयतूर समाज की गहराई तक उसकी संस्कृति, समाज की पद्धति, विचारने, कार्य करने का स्वरूप कोयतूर समाज के अन्तर्निहित होता हैं। इन्हीं में से एक झारखंड की मुख्य संस्कृति का अभिन्न अंग ‘ करम पर्व’ है।
करम पर्व प्रकृतिक व आर्थिक अर्थतंत्र पर आधारित झारखंड के कोयतूरों की दूसरी सबसे बड़ी त्योहार हैं। इस दिन ‘करम पेड़’ की पूजा होती है, बहनें अपने भाईयों की उन्नति, खुशी की कामना के लिए उपवास रखती हैं। किसान अपनी अच्छी फसल की कामना करता हैं।
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इस दिन सभी पूजा करने के बाद रात भर ‘करम नृत्य करते हैं।
करम पर्व की पूर्व संध्या का आयाेजन ‘खूंटी’ जिले के छोटे भाई युवा सुखराम पाहन जो एक कोयतूर गीतकार और संगीतकार है इसने बहुत कम उम्र में ही कोयतूर गीत संगीत में अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि हासिल की है । भाई सुखराम पाहन ने ही अपने गाॅव यानि ‘गया मुंडा’ का गाॅव ‘कुद्दा’ में ‘करम पूर्व’ संध्या’ का आयोजन किया जो बड़े धूमधाम से मनाया गया । इस कार्यक्रम में · मुख्य अतिथि के रूप में रांची से बरखा लकड़ा, व पदमश्री आदणीय मंधु मंसूरी जी ( ‘गाँव छोड़ब नाही..जंगल छोड़ब नाही, माय माटी छोड़ब नाही, लड़ाई छोड़ब नाही, और नागपुर कर कोरा’ जैसा ऐतिहासिक गीत गाया हैं) विशिष्ट अतिथि के रूप में खूंटी जिले के उप -उपायुक्त और डीएसपी मौजूद थे।
बरखा लकड़ा
कोयतूर महिला शक्ति पड़हा ‘भारत’
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राजा शंकरशाह एवं कुंवर रघुनाथशाह मडावी का राष्ट्र के लिए बलिदान