कंगला मांझी,Kangla-Manjhi-(Hira-Singh-Dev)
Kangla-Manjhi-(Hira-Singh-Dev)

गोंडवाना गौरव, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, क्रांतिकारी, गरीबों, कोयतूर और किसानों के मसीहा, समाजिक कार्यकर्ता, मध्य भारत में आजाद हिंद फौज के संस्थापक, बस्तर में अंग्रेजी सेना को हराने वाले, जल-जंगल-जमीन और अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले, अहिंसक क्रांति के पुरोधा, आजाद भारत में नये सिरे से आजाद हिंद फौज (श्री मांझी अंतरराष्ट्रीय सेना) के संस्थापक, गरीबों और किसानों को अपनी सारी संपत्ति दान करने वाले मांझी (मुखिया), आजादी के पहले 156 विश्व राष्ट्र सम्मेलन में गोंडवाना गणराज्य के प्रतिनिधि, बस्तर का हीरा, गोंडवाना रत्न हीरा सिंह देव कांगे उर्फ कंगला मांझी जी को सत सत नमन ।

छत्तीसगढ़ और कोयतूर समाज की विपन्नता और अत्यंत कंगाली भरा जीवन देखकर हीरा सिंह कांगे देवमांझी ने खुद को कंगला घोषित कर दिया । इसलिए वे छत्तीसगढ़ की आशाओं के केंद्र में आ गए, ना केवल कोयतूर समाज उनसे आशा करता था बल्कि पूरा छत्तीसगढ़ उनकी चमत्कारिक छवि से सम्मोहित था कंगला मांझी विलक्षण नेता थे राष्ट्र गौरव की चिंता करते हुए देश में गोंडवाना राज्य की कल्पना करते थे उन्होंने बार-बार अपने घोषणा पत्रों में पंडित जवाहरलाल नेहरू का चित्र छाप कर यह लिखा कि देश के लिए समर्पित रहकर मिट्टी का कर्ज चुकाना है।

कंगला मांझी का जन्म एवं पारिवारिक जीवन

कंगला मांझी सरकार का जन्म कांकेर जिले के तेलावट ग्राम में हुआ था यह कंगला मांझी का ननिहाल गांव था सलाम परिवार उनके मामा परिवार हैं यही उनका बचपन बीता है श्रम करते हुए वे जीवन के ऊंचाई ऊपर चढ़ते रहे। पिता का नाम रैनू मांझी तथा मां का नाम चैतीबाई था। उनकी शादी छुठपन में हो गई थी।

बिरझा देवी उनकी पहली पत्नि थी। बिरझा देवी से एक बेटा कमलदेव तथा तीन बेटियां कमला, कौशिल्या एवं कुंवरबाई हुई। यह परिवार आमापारा दुर्ग में रहता है। उन्होंने 1965 में दूसरा ब्याह किया। कोयतूर परिवार की पढ़ी-लिखी लड़की फुलवा देवी से उन्होंने ब्याह किया। श्रीमती फूलवा देवी विवाह से पूर्व बालबाड़ी में शिक्षिका थी।

हीरा सिंह देव का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन

हीरा सिंह देव कांगे ने संविधान बनने से पहले जब 156 राष्ट्रों का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था, तब भारत की तरफ से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू वहां गए थे; जबकि गोंडवाना राज्य की तरफ से हीरा सिंह देव गए थे, तब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैसला लिया गया था कि गोंडवाना के अस्तित्व के साथ छेड़छाड़ नहीं की जाए, लेकिन कालांतर में गोंडवाना कोयतूरो को राज्यों के बंटवारे की आड़ लेकर एक-दूसरे से दूर कर दिया गया।

इस पीड़ा से हीरा सिंह देव काफी आहत हुए और उन्होंने ऐशोआराम वाली जिंदगी छोड़ गरीब कोयतूरो के बीच रहकर अधिकार की लड़ाई लड़ने का संकल्प लिया। उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति गरीबों को दान कर दिया था। तत्कालीन सरकार के सामने अपने आप को कंगला घोषित कर दिया था। तभी से उनका नाम श्री मांझी हो गया।

मांझी का हिंदी में अर्थ मुखिया है, जबकि कंगला का आशय गरीब से है। यानी उनके सम्मान में और उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए ही श्री कंगला मांझी कोयतूर कल्याण समिति का गठन किया गया।

Kangla-manjhi-with-indira-gandhi
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कंगला मांझी का अंग्रेजी शासन के खिलाफ लड़ाई

कांगला मांझी ने आजादी की लड़ाई लड़ी और बस्तर में बैलाडीला लोहे की खदान से ब्रिटिश शासन का अंत होने शुरू होने लगा। कंगला मांझी ने निडर होकर कहा कि इस धरती का एक ही मालिक कोयतूर है और हम कोयतूरो किसी को अपना जल, जंगल और जमीन नहीं देंगे।

तब ब्रिटिश सरकार के अधिकारी ने कहा कि हम विश्व के सबसे ताकतवर राष्ट्र हैं, हमें कोई हरा नहीं सकता है। इस पर मांझी ने कहा कि हम कोयतूर भील हैं, आदिशक्ति बुढ़ादेव के वंशज हैं। हमें कोई हरा नहीं सकता। इस पर अंग्रेज अफसर ने कहा कि उसका भाला, तीर, बरछी और धनुष हमारे तोप के गोले और हथियारों के खिलाफ काम नहीं करेगा। तुम एक तीर चलाओगे तो हम तुम पर बमबारी करेंगे।

मांझी ने निडरता से कहा कि तुम एक बार छीनोगे तो हम उससे ज्यादा हथियार लाएंगे। एक गोली चलने से पहले हम सैकड़ों तीर चलाएंगे। मांझी ने ऐसा ही किया और करीब 15 दिनों तक चली लड़ाई में कोयतूरो ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए।

उस दौरान अंग्रेजों के अन्याय के खिलाफ 1913 से वे स्वतंत्रता आंदोलन में जुड़ गए और बालोद जिले के डौंडी विकासखंड के बघमार गांव से उन्होंने अपना यह अभियान शुरू किया। बघमार को उन्होंने अपना मुख्यालय बनाया। इस दौरान वे दो साल तक एकांतवास में रहे। उनके राष्ट्रहित आंदोलन से लोगों में एक नया जोश आया। मांझी बीहड़ घने जंगलों में रहकर कोयतूरो और किसानों को अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलन के लिए संगठित कर जगाते थे।

1914 में बस्तर की गतिविधियों से चिंतित हो कर अंग्रेज सरकार कोयतूरो को दबाने जा पहुंची। बैलाडीला परगना क्षेत्र के 3 पेनक के पुजारियों को अंग्रेजों ने कील ठोकर मार दिया कारण अंग्रेज कोयतूरो की पेनक (देवता) विश्वास व आस्था पर चोट करना चाहते थे पेनक शक्ति पर कोयतूरो के अटल विश्वास पर प्रहार करने के लिए ही पुजारियों की कील ठोक कर हत्या कर दी गई थी।

Kangla-manjhi-with-indira-gandhi-1979
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कोयतूर आंदोलन की अलिखित परम्परागत पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित हो रही है। इतिहास के अनुसार लोग आज भी बताते हैं की 3 देवताओं के बैगा पुजारियों को जब कील ठोक कर मार दिया गया तब वहां 3 वीर बस्तरिया पेनक प्रकट हुये थे। इन पेनक ने अंग्रेजों से पूछा कि आप बस्तर में क्या चाहते हैं लड़ना है तो हमसे लड़ो माटी पुत्र गोंड कोयतूरो से क्यों लड़ते हो??? अंग्रेज ने कहा मैं जर्मन से हार गया हूं यहां आराम करने आया हूं ।

कुछ दिनों बाद फिर कोयतूरो की अंग्रेज से लड़ाई हुई जिसमे अंग्रेज हार गए, फिर अंग्रेजों ने कांकेर राज्य की राजमाता से 3000 सैनिक देने के लिए कहा, तो कंगला मांझी ने राजमाता को समझाया कि यदि सैनिक उनको दे दिया, तो यहां की रक्षा कैसे होगी। इसलिए माता ने अंग्रेजों से कहा कि वह अपनी प्रजा से परामर्श करने के बाद उत्तर देंगे।

कंगला मांझी ने राजमाता को समझाया कि अंग्रेज हमारी ही ताकत से हमें गुलाम बना कर बैठे हैं इसलिए हम उन्हें सहयोग ना करें आज वे बस्तर में हारे हैं कल देश से हार कर भाग जाएंगे

कंगला मांझी ने अंग्रेजी सरकार से गोंडवाना राज्य की मांग की। 1915 में रांची में बैठक हुई 1915 से 1918 तक लगातार बैठकी होती रही 1919 में अंग्रेजों ने कांकेर बस्तर और धमतरी क्षेत्र को मिलाकर एक गोंडवाना राज्य बना देने का प्रस्ताव दिया कंगला मांझी इससे सहमत नहीं हुए एक छोटे से क्षेत्र में राज्य की बात उन्हें स्वीकार नहीं थी। उन्होंने कहा कि “विराट गोंडवाना राज्य के वंशजों को एक छोटे से भूभाग का लालच दिया जा रहा है हम सहमत नहीं हैं।….”

उसके बाद से देशभर में मांझी के सैनिक तैयार होने लगे। यह सैनिक प्रदेश सहित महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, झरखंड से सैकड़ों की संख्या में मांझी सरकार के सैनिक आए थे। कोयतुरो के जल-जंगल-जमीन के संरक्षण व अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए आजाद हिंद फौज के संस्थापक सुभाष चंद्र बोस और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे । कंगला मांझी के नेतृत्व में गठित मांझी सरकार के सैनिक आज भी जिंदा हैं।

कंगला मांझी पेनवासी

कंगला मांझी 5 दिसंबर 1984 को बघमार गांव में संपूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर इस लोक से विदा हो गए। मांझी के निधन के बाद उनके सैनिक उनके आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। अभी अखिल भारतीय माता दंतेवाड़ी समाज समिति संगठन द्वारा संचालित हो रहा है। कंगला मांझी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके द्वारा प्रशिक्षित सैनिक अभी भी विभिन्न राज्यों में रहते हैं और निस्वार्थ भाव से अपने काम और सिद्धांतों का प्रचार करते हैं और लोगों के बीच अपने नाम और कार्यों को जीवित रखते हैं।

Kangla-manjhi-sainik
Kangla-manjhi-sainik

कंगला मांझी ने सैनिकों को संगठित किया। मांझी के कुशल नेतृत्व युवाओं के लिए रोल मॉडल हैं जो कि पूंजी के अभाव में भी सैनिको को संगठित रखकर लोहा लिया और यह बता दिया कि व्यक्ति में कुछ करने की जज्बा हो तो मुश्किल कार्य भी आसान हो जाता है।

उनके मृत्यु पश्चात उनके नाम से सार्वजनिक स्कूल-कालेज का निर्माण हुआ। कंगला मांझी हमेशा गरीबों, कोयतुरो का मसीहा रहे हैं। देश की आजादी में भी बड़ा योगदान दिए। देश आजाद हुआ पर आज भी आजादी के लिए कोयतूर तरस रहे हैं। छत्तीसगढ का कोयतूर हीरा कंगला मांझी जब तक इनके बीच रहा, नक्सली समस्या छत्तीसगढ में नही आई।

कोयतूरो में सामाजिक चेतना एवं जागृति के लिए उनके संगठन ने ऐतिहासिक काम किया है। नशा विरोधी अभियान चलाकर कोयतूरो को सुगठित होने के लिए कंगला मांझी ने आह्वान किया। सामाजिक राजनैतिक जागृति के साथ ही शैक्षणिक और प्रशंसनीय दक्षता प्राप्त कर आगे बढ़ने का आह्वान भी उन्होंने किया। आज कोयतूर समाज निरंतर आगे बढ़ रहा है।

जोहार

जय गोंडवाना

डॉ परदेशी राम वर्मा


आखाड़ी पूर्णिमा | खुट गोंगो (पुजा)

डॉक्टर मोती रावण कंगाली जी का जीवन परिचय | गोंडवाना संशोधक

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