

देश में महाराष्ट्र के जिला गोंदिया में स्थित कचारगढ़ गुफा है, यहाँ हर साल माघ पूर्णिमा के दिन भारी संख्या में लोग देश के कोने कोने से कोयतुर समाज के सगाजन यहां आते है । यह गुफा महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ बॉर्डर पर बेहद प्रकिर्तिक खूबसूरती घने जंगल के बिच स्थित है । जिसकी सौन्दार्ता अद्भुद है और यहाँ की अधिकतर आबादी गोंड जनजाति कोयतुर है ।
Kachargarh Caves | प्रकीर्ति गुफा से संबंधी जानकारी :-
1:- यह एशिया की सबसे बड़ा प्रकिर्तिक गुफा है ।
2:- यह गुफा महाराष्ट्र छत्तीसगढ़ सीमा से पर और सतपुड़ा पर्वत की सुंदरता देखते ही बनता है। यह गुफा पहाड़ो और घने जंगलो से घिरा हुआ है।
3:- यह गुफा धन्नेगांव जिला- गोंदिया महाराष्ट्र में मुंबई-हावड़ा मार्ग पर दर्रेकसा रेलवे स्टेशन से 3 कि०मी० दूर है, यही कछारगढ़ गुफा का रास्ता प्रारंभ होता है।
4:- 518 मीटर ऊंचाई पर स्थित यह प्रकिर्तिक गुफा है ।
5:- इस गुफा की ऊंचाई 94 मीटर है और गुफा का प्रवेश द्वार 25 मीटर है।
6:- U-आकार की पर्वत श्रृंखला के बीच एशिया की सबसे बड़ी गुफा है। गुफा का प्रवेश द्वार दक्षिण विमुख है। उसके अंदर दाएँ तरफ जल कुंड है, जो साल भर पानी से भरा रहता है । गुफा के उपरी भाग में लगभग 20 फिट ब्यास वाला झरोखा है और इसे झरोखा से शुद्ध हवा गुफा के अन्दर आती है । कुंड के पास ही बहुत बड़ा खंदक है । गुफा का प्रवेश द्वार प्राचीन काल में बहुत छोटा था । माता काली कंकालीन के बच्चो को मुक्त करने के लिए उसे खोदा गया जिसका आकार बाद में बड़ा हो गया । गुफा के सामने कचारगढ़ पर्वत का उचां शिखर है, उसे रानीगढ़ कहा जाता है । गुफा के पश्चिन पर्वत अभयारण्य में एक कुटिया है, जहाँ पहन्दी पारी कूपार लिंगो ने काली कंकाल के बच्चों को मुक्त करने के बाद शिक्षा देने के लिए टीला बनाया था। यहाँ दोनों पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य में काली कंकाली दाई का शक्ति स्थल है, जिसे काली कुवारिया दाई का ठाना भी कहा जाता है।
7:- यहाँ घने जंगल में स्थित गोंड़ गण (कोयतूर) सगाजनों का धार्मिक स्थल कोयली कचारगढ़ है ।
8:- यही से आदि माहामानव पहन्दी पारी कूपार लिंगो द्वारा प्रकिर्तिक को बचाये और बनाये रखने के लिए आदि गोंडी (कोयतूर) प्रकिर्तिक संम्मत धर्म की स्थापना की गई थी ।
Kachargarh gufa | कचारगढ़ का इतिहास :-
आर्य ब्राह्मण के आगमन से पूर्व, आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व कोयतूर गोंडी धर्म के धर्म गुरु पहांदी पारीकोपार लिंगो ने इस स्थल से गोंडी धर्म की स्थापना व धर्म का प्रचार शुरू किया ।
शम्भू शेक जब इस पृथ्वी के राजा थे, तब उनके साथ गौर का निवास था । काली कंकालीन के बच्चे जब कचारगढ़ जा पहुंचे तो गौरा दाई ने उन्हें दूध पिलाया था । तैतीस कोट बच्चों जब ओर दूध की मांग करने लगे और रानी को सताने लगे तब शम्भू शेक क्रोधित हो कर सभी बच्चो को गुफा में बंद कर दिया था । दाई काली कंकालीन और जंगो रायेतर बच्चो को खोजते खोजते कचारगढ़ पहुंचे तो शम्भू शेक ने उन्हें मुक्त करने का रास्ता बताया । शम्भू शेक ने कहा से सभी बच्चो को असभ्य है, यदि ये बच्चे बिना शिक्षा-दीक्षा के समाज में जायेगे तो समाज में अस्थिरता, असभ्यता और अशांति फैले गी । इसीलिए इन्हें सभ्य और शिक्षात बनाने के लिए गुरु की तलास करो । दाई काली कंकालीन और जंगो रायेतर गुरु की तलास करने लगे, उन्हें पता चला की पहांदी पारी कुपार लिंगो ने आत्म ज्ञान प्राप्त किया । पाहंदीपारी कोपार लिंगों और उनके संगीत गुरु हीरा सुका लिंगो पाटालिर (सुकाचार) के किंगरी के साथ शूरो से बच्चो को मुक्त किया गया । उसी ढलान से हीरा सुका लिंगो पाटालिर की मौत हुई थी । आज भी कोयली कचारगढ़ की गुफा में प्रवेश द्वार पर हीरा सुका लिंगो पाटालिर की पूजा की जाती है और उसके पश्चात गुफा में प्रवेश किया जाता है ।
कोयतूर समाज में यह किमबदंतिया आज भी प्रचलित है बच्चो को गुफा से मुक्त करने के लिए हीरा सुका लिंगो पाटालिर ने बलिदान दिया है इसलिए सगादेव की पूजा करने से पूर्व उसको स्मरण करते हुए किंगरी बजाना अनिवार्य है । गोंडी धर्म के प्रथम गुरु पाहंदीपारी कोपार लिंगों ने माता काली कंकालीन के तैतीस कोट बच्चों को इस गुफा से मुक्त कराकर प्रकृति सम्मत शिक्षा-दीक्षा प्रदान किया । धर्म गुरु लिंगों ने तैतीस कोट के बच्चों को 12 भागो में विभाजित किया (1+2+3+4+5+6+7+1+1+1+1+1 = 33 बच्चों) और अनुयायी बनाया तथा भाग 1(में 100 गोत्र), इसी तरह भाग 2 (100 गोत्र), भाग 4 (100 गोत्र), भाग 5 (100 गोत्र), भाग 6 (100 गोत्र), भाग 7 (100 गोत्र), भाग 8 (10 गोत्र), भाग 9 (10 गोत्र), भाग 10 (10 गोत्र), भाग 11 (10 गोत्र), भाग 12 (10 गोत्र) कुल 750 गोत्र की दीक्षा दी । दीक्षा देकर धर्म का प्रचार-प्रसार करने का मंत्र दिया । ऐसी मान्यता है कि तैतीस कोटी देवताओं का नामकरण यही किया गया । बाद में, गोंड के राजाओं ने अपने छोटे-छोटे राज्य स्थापित किए और राज पद्धति को 4 विभागों में विभाजित किया।
जिसमें येरगुट्टाकोर, उम्मोगुट्टा कोर, सहीमालगुट्टा कोर तथा अफोकागुट्टा कोर का समावेश है । येरगुट्टा कोर के समूंमेडीकोट इस गणराज्य में करीतुला नाम का एक कोसोडुम नाम के पुत्र ने जन्म लिया । जिसे गण प्रमुख माना गया ।
कचारगढ़ गुफा के परी क्षेत्र का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा उत्खनन करने पर वहां पाषाण युग से समबंधित प्रमाण प्राप्त हो चुके है । जिससे पता चलता है की यहां अनादी काल से मानव समुदाये का निवास था । पाषाण युग, मध्य पाषाण युग नव पाषाण युग में उपयोग किये जाने वाले औजार वहां प्राप्त हुए है । जो इस बात के प्रमाण है, कोयवंसी गोंड समुदाय का यह अनादीकाल से धार्मिक स्थल रहा है ऐसा पुरातत्व वेदा चन्द्र शेखर गुप्त का मन्ना है । चन्द्र शेखर गुप्त कहते है जब शम्भू शेक ने कोयली कचारगढ़ में बच्चो को कैद किया था तब वह काल अवश्य पाषाण कालीन युग था ।
Kachargarh ki yatra | कचारगढ़ की सांस्कृतिक जात्रा की शुरुआत / कचारगढ़ मेला :-
वर्ष 1980 में आचार्य मोती रावण कंगाली जी, तिरुमाल केशव बानाजी मर्सकोले जी और भोपाल से गोंडवाना दर्शन के संपादक सुन्हेर सिंह ताराम जी, तीनों ने कचारगढ़ को कोइतूर गोंडों के धार्मिक स्थान के रूप में चिन्हित किया । इसी क्रम में वर्ष 1984 की माघ पूर्णिमा के दिन तिरु०मोती रावण कंगाली जी,सुन्हेर सिंह ताराम जी, तिरु०हीरा सिंह मरकाम जी, भारत लाल कोराम जी और गोंडवाना मुक्ति सेना के सर सेनापति शीतल कवडू मरकाम जी कुल पांच लोगों ने पहली बार कचारगढ़ गुफा की धार्मिक जात्रा शुरूआत की । यही पाँच लोग टेंट में रहे और पत्रिका गोंडवाना दर्शन में इस यात्रा और मेले का विस्तार में प्रचार किया गया ।
Kachargarh mela | कचारगड़ मेला जानेवाले के लिए ट्रेन रूट :-
1) Train no.18238 -छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस
3:55 नागपुर
6:23 सालेकसा
2) Train no.12856 -बिलासपुर इंटरसिटी एक्सप्रेस
6:30 नागपुर
9:27 डोंगरगढ़
3) Train no.58206 -इतवारी रायपुर पैसेंजर
7:30 नागपुर
11:10 दरेकसा
4) Train no.12410 -निजामुद्दीन रायगढ़ गोंडवाना एक्सप्रेस
9:40 नागपुर
12:23 डोंगरगढ़
5) Train no.12809 -मुम्बई cst howrah मेल
11:25 नागपुर
14:10 डोंगरगढ़
6) Train no.12844 -अहमदाबाद पूरी सुपरफास्ट एक्सप्रेस
11:45 नागपुर
14:25 डोंगरगढ़
7) Train no.18029 -शालीमार एक्सप्रेस
13:30 नागपुर
16:23 सालेकसा
8) Train no.12833 -अहमदाबाद howrah सुपरफास्ट एक्सप्रेस
18:00 नागपुर
20:57 डोंगरगढ़
9) भोपाल/इटारसी से कछारगढ़
जबलपुर से कछारगढ़ (व्हाया इटारसी )
जबलपुर से कछारगढ़ (व्हाया नैनपुर ) यदि उपलब्ध है ।
उत्तर प्रदेश व विहार के बरौनी से चलकर बलिया, गाजीपुर, जौनपुर, वाराणसी,मिर्जापुर, छिवकी ईलाहाबाद, सतना, कटनी, शहडोल उमरिया रायपुर दुर्ग राजनांदगांव से डोंगरगढ तक कचारगढ जाने के लिए बरौनी Gondia Express ट्रेन है ।
? टिप- डोंगरगढ़ से दरेकसा 24 km है ।
?टिप- सालेकसा से दरेकसा 12km है ।