june 5 world environment day
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?पर्यावरण में मुख्य रूप से दो घटक होते हैं

1. अजैविक/निर्जीव घटक (अबायोटिक) – वायु, जल, मिट्टी, अग्नि, प्रकाश और

2. जैविक/सजीव घटक (बायोटिक), यह एक सूक्ष्म जगत से बनी एक इकाई है, जो हमें एक आवरण के रूप में घेरती है।

पर्यावरण के प्रतिक्रियाओं के जैविक – अजैविक घटकों के भौतिक और रासायनिक गुण प्रत्येक जीव या उसके पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करते हैं।

 

?सामान्य वातावरण को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है:

(1) प्राकृतिक वातावरण: वे प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं।

(2) मानव निर्मित पर्यावरण: इसमें कृषि, औद्योगिक, शहरी, हवाई अड्डे और अंतरिक्ष स्टेशन क्षेत्र आदि शामिल हैं।

(3) सामाजिक वातावरण: सामाजिक वातावरण सांस्कृतिक मूल्यों, विश्वासों, भाषाई और धार्मिक रीति-रिवाजों और जीवन शैली आदि के आधार पर बनाया गया है।

 

?इस तरह, हमें यह जानना चाहिए कि हम अपने आसपास के वातावरण को कैसे प्रभावित करते हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हो सक्ता। प्राकर्तिक पर्यावरण और मानव निर्मित निर्माण पर हमे संतुलन बनाना होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस आधुनिक युग में पर्यावरण पर मानव निर्मित निर्माण कार्य से असंतुलित व अनियमित हो रहा है, इसके परिणाम गंभीर हो सकता है। आज प्राकृतिक पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है जो जलवायु परिवर्तन के रूप में हमारे सामने आ रहा है। 

?जंगल में जैव विविधता खतरे में है जिसके जिम्मेदार हम मनुष्य हैं। आज हम दुसरे जीवों से खुद को सर्वश्रेष्ठ और अजय मानते हैं इसलिए हम पक्षियों, जानवरों, कीड़े, मकोडो, पेड़, पौधों, वनस्पतियों और अन्य जीवों के जीवन को ज्यादा मायने नहीं रखते है। हमारे लिए, प्रकृति, वायु, जल, मिट्टी और अन्य अजैविक घटक उपभोग के साधन बन गए हैं। जबकि अजैविक घटक हमारे जीवन का मूल आधार है।

?मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सुख, शांति, आनंद की भावना और समाज में एक दुसरे का सहयोग करने से एक-दूसरे से जुड़ते है। प्रकृति के साथ रहने की भावना को सहजीवन का सिद्धांत कहा जाता है। मनुष्य सहित प्रकृति के सभी जीव अपने जीवन के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे पर निर्भर हैं। इसे #कोयतूर जीवन दर्शन के #कोया पुनेम में #”जीवा पर्रो जीवा पिसायता” कहा जाता है।

?मानव प्रकृति में एक सुरक्षित जीवन जी सकता है जब तक कि अन्य जानवर, पेड़, पौधे, वनस्पतियां, कीट और सूक्ष्मजीव प्रकृति में सुरक्षित हैं और वे भी तब तक सुरक्षित रहेंगे जब तक प्रकृति के पांच तत्व हैं। जमीन, हवा, आग, आकाश संतुलित हो और प्रदूषण से मुक्त होंगे।

?इसलिए यदि हम खुद को सुरक्षा रखना चाहते हैं तो हमें पर्यावरण को सुरक्षित रखना होगा जिससे आने वाली पीढ़ियां हमारे पूर्वजों की तरह सुरक्षित जीवन व्यतीत कर सके इसके लिए हमें अपने सामाजिक परिवेश को ध्यान में रखते हुए, मनुष्य द्वारा निर्मित कार्य, “जीवा पर्रो जीवा पिसायता” के सिद्धांतो पर करना होगा।

?हमें पर्यावरण और प्राकृतिक वातावरण में संतुलन बनाए रखा जाना चाहिए और प्रकृति में सभी जैव विविधता को संरक्षित रखना चाहिए ताकि हम प्राकृतिक संसाधनों को अपने निजी लाभ के लिया उसका हद से ज्यादा दोहन न के बैठे। महत्वाकांक्षाओं, अनियमितताओं और अनियंत्रित विकास के अधीन न हो जाए। प्रकृति में जल, जंगल और ज़मीन को बचाए । कोयतूर समुदाय प्रक्रर्तिक का रक्षक है। यह पर्यावरण को प्रदूषण से बचाता है।

हमें अपने आसपास हरे पेड़ पौधे लगाना चाहिए। साथ ही हमे गरीब, ऊंच-नीच, जातिवादियों, धर्म परिवर्तन, जैसी सामाजिक बीमारियों से एक-दूसरे की रक्षा करना चाहिए। हम आपने सहयोग और सद्भाव के साथ सामंजस्य स्थापित करेंगे। हम किसी का शोषण नहीं करेगा और न ही उसे प्रताड़ित करेगा। हम किसी के अधिकारों को नहीं छीनेंगे। हम दूसरों की संस्कृति को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। हम उस पर आक्रमण नहीं करेंगे और हम उनका सम्मान करेंगे तभी हमारी पर्यावरणीय प्रकृति सुरक्षित रहेगा।

?????5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर आप सभी को बधाई।?????

 

सेवा जोहार


अंडमान निकोबार द्वीप समूह की जनजातिया

कोयतूर सभ्यता का विकास क्रम

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