🙏👏 परम सम्मानिय सामाजिक साथियों,, सिन्धु सभ्यता,, सिन्धु घाटी के उत्खनन और शोध ने पूरी दुनियाँ को आश्चर्य में डाल दिया है। वह एक अति शक्तिशाली विकसित सभ्यता रही है। जहां नगरों की बसाहट मास्टर प्लान से थी। जिसमें सिक्के मिले हैं,, वर्तन मिले हैं,, आभूषण मिले हैं और सबसे बड़ी बात वहाँ ऐसी लिपी-आलेख भी मिले है कि जिसमें चार सौ वर्णाक्षर हैं। जिसे सिन्धु सभ्य शैवसँस्कृति गोत्रवादी शैवशिलालेख लिपी माना गया था,,🙏🏿


🙏👏उस शैवसँस्कृति शैवशिलालेख लिपी को अंग्रेज़ इतिहासकार नहीं पढ़ पाते थे, इसलिए उस लिपी को नही चाहते थे, कि इसे कोई पढ़कर जान जाये ! महान इतिहासकार अर्नाल्ड जे. टायनबी ने कहा था कि विश्व के इतिहास में अगर किसी देश के इतिहास के साथ सर्वाधिक छेड़ छाड़ की गयी है, तो वह भारत का इतिहास ही है। सिन्धू घाटी को जम्मूद्वीप और श्रीलंका को सिंगारद्वीप के नाम रखा गया था, जहाँ गढ़कोट का अलग-अलग तैतीसगढ़ कोट समूह था,, सिन्धू सभ्य तैतीसगढ़ कोट के गढ़ समूहों को गण्डाजीव के नाम से जाना जाता था। जहाँ तैतीसगढ़ कोट के प्रत्येक गढ़ समूहों मे 88 महाबलशाली गण्डाजीव गढ़ समूहों का रक्षा करते थे।🙏🏿


🙏👏प्राकृतिक गोत्रवादी त्रिशूल मार्ग साधक शैवसँस्कृति सत्यमार्ग पर गढ़कोट की रक्षक बने हुए थे। भारतीय जम्मूद्वीप तैतीसगढ़ कोट के शैवसँस्कृति शैवशिलालेख इतिहास सिन्धु घाटी की सभ्यता से भी पुरातन प्राचीन है। यह सभ्यता के विकास क्रम एक पड़ाव है। यानि सिन्धू सभ्यता इतनी विकसित हो गई थी कि वे अपनी बात कहने के लिए प्राकृतिक गढ़कोट बोली मे एक भाषा का उपयोग करने लगे थे। जिसे पाषाणकालीन कास्यकालीन, ताम्रकालीन और लौहकालीन सभ्यता के नाम से जाना जाता है।🙏🏿*
🙏👏 इसके बाद से ही मोहनजोदड़ो– हड़प्पा कालीन सभ्यता या सारस्वत सभ्यता का उदगम हुआ जिसे हड़प्पा कालीन सभ्यता भी कहा जाता है। बताया जाता है कि वर्तमान सिन्धु नदी के तटों पर 3500 BC (ईसा पूर्व) में एक विशाल नगरीय सभ्यता विद्यमान थी। मोहनजोदारो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल आदि इस सभ्यता के नगर थे। पहले इस सभ्यता का विस्तार “” सिन्ध, पंजाब, राजस्थान और गुजरात “” आदि बताया जाता था,, किन्तु अब इसका विस्तार समूचा भारत, तमिलनाडु से वैशाली बिहार तक, पूरा पाकिस्तान व अफगानिस्तान तथा ईरान का हिस्सा तक पाया जाता है। अब इसका समय 7000 BC से भी प्राचीन पाया गया है। इस प्राचीन सभ्यता की खुदाई से प्राचीन “” सीलों, टेबलेट्स, पत्थरों और बर्तनों “” पर जो लिखावट पाई गयी है। उसे सिन्धु घाटी की लिपि कहा जाता है।🙏🏿


🙏👏 इतिहासकारों का दावा है कि यह लिपि अभी तक अज्ञात है , ये शैवशिलालेख लिपी है जिसे पढ़ा नहीं जा सकता, जबकि सिन्धु घाटी की लिपि से समकक्ष और तथाकथित प्राचीन सभी लिपियां जैसे – इजिप्ट, चीनी, फोनेशियाई, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई आदि सब पढ़ ली गयी हैं। आजकल कम्प्यूटरों की सहायता से अक्षरों की आवृत्ति का विश्लेषण कर मार्कोव विधि से प्राचीन भाषा को पढ़ना सरल हो गया है। सिन्धु घाटी की लिपि शैवशिलालेख को जानबूझ कर नहीं पढ़ा गया और न ही इसको पढ़ने और जानने के सार्थक प्रयास किया गया। क्योंकि जम्मूद्वीप पर आर्यों का आगमन हो चुका था,,और वे नही चाहते थे कि सिन्धू सभ्य शैवशिलालेख लिपी को सार्थक बनाया जाय, और मोहनजोदड़ो मे प्रसारित किया जाय।🙏🏿
🙏👏उस शैवसँस्कृति शैवशिलालेख लिपी को आर्यों के द्वारा मिटा दिया गया। भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद (Indian Council of Historical Research) जिस पर पहले अंग्रेजो और फिर कम्युनिस्टों का कब्ज़ा रहा,, उन्होने सिन्धु घाटी की शैवशिलालेख लिपी को जानने, समझने और पढ़ने की कोई भी विशेष योजना नहीं चलायी। आर्यों की दबाव पूर्ण कार्यवाही के कारण सिन्धु घाटी की शैवशिलालेख लिपी को अंग्रेज इतिहासकार चलाने के लिए प्रसारित नहीं कर पाये,, जिसे मिटा दिया गया।ताकि सिन्धु घाटी की लिपि कोई पढ़ ना पाए।🙏🏿


🙏👏अंग्रेज इतिहासकारों की नज़रों में सिन्धु घाटी की शैवशिलालेख लिपि को पढ़ने में निम्नलिखित खतरे थे:–
1:– सिन्धु घाटी की लिपि को पढने के बाद कोई लिपी या इतिहास नही बन पायेगी। उसकी प्राचीनता और अधिक पुरानी सिद्ध हो जायेगी। “” इजिप्ट,चीनी,रोमन, ग्रीक, आर्मेनिक, सुमेरियाई, मेसोपोटामियाई “” से भी पुरानी. जिससे पता चलेगा कि यह विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता का लिपी है,और यह भारत का महत्वपूर्ण लिपी बन जायेगा,, हमारे लिपी या इतिहास नही बन पायेगा। ये बात आर्यों ने बर्दाश्त नही किया और अंग्रेज एवं कम्युनिस्ट इतिहासकारों को शक्ति पूर्ण दबाव देकर सिन्धू सभ्य लिपी को दबा दिया गया।🙏🏿
2:–आर्यों के मतानुसार सिन्धु घाटी की लिपि को पढ़ने से अगर वह वैदिक सभ्यता साबित हो गयी तो अंग्रेजो और कम्युनिस्टों द्वारा फैलाये गए “” आर्य-द्रविड़ युद्ध “” वाले प्रोपोगण्डा से ध्वस्त हो जाने का डर है.
3:– अंग्रेज और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा दुष्प्रचारित ‘”‘आर्य, सवर्ण, “” बाहर से आई हुई आक्रमणकारी जाति के है और इसने यहाँ के मूल निवासियों अर्थात सिन्धु घाटी के लोगों को मार डाला व भगा दिया गया और उनकी शैवसँस्कृति मानवजाति मानवधर्म सिन्धू सभ्यता के महान सभ्यता नष्ट कर दिया गया। तब जम्मूद्वीप के गढ़कोट के लोग ही जंगलों में छुप गए, दक्षिण भारतीय (द्रविड़) बन गए, शूद्र व आदिवासी बन गए, आदि आदि अनेक समूहों मे गलत ढँग से साबित होते गये।🙏🏿


🙏👏 कुछ इतिहासकार भारतीय प्राचीनता को कम करने के लिये सिन्धु घाटी की लिपी को सुमेरियन भाषा से जोड़ कर पढने का प्रयास करते रहे,, तो कुछ इजिप्शियन भाषा से, कुछ चीनी भाषा से,, कुछ इन मुण्डा आदिवासियों की भाषा, और तो और कुछ लोग इनको ईस्टर द्वीप के आदिवासियों की भाषा से जोड़ कर पढ़ने का प्रयास करते रहे., ये सारे प्रयास असफल साबित हुए., और उस भाषा का कोई समाधान नही निकल पाया।🙏🏿
🙏👏 सिन्धु घाटी की लिपी को पढ़ने में निम्लिखित समस्याए बताई जाती है:– सभी लिपियों में अक्षर कम होते है,, जैसे अंग्रेजी में 26, देवनागरी में 52 आदि। मगर सिन्धु घाटी की लिपि में लगभग 400 अक्षर चिन्ह हैं., सिन्धु घाटी की लिपि को पढने में यह कठिनाई आती है कि इसका काल 7000 BC से 1500 BC तक का है, जिसमे लिपि में अनेक परिवर्तन हुए साथ ही लिपि में स्टाइलिश वेरिएशन बहुत पाया जाता है। अनेक विद्वानों ने लोथल और कालीबंगा में सिन्धु घाटी व हड़प्पा कालीन अनेक पुरातात्विक साक्षों का अवलोकन किया।🙏🏿
🙏👏 इसी शैवसँस्कृति शैवशिलालेख लिपी से ही भारत की अन्य भाषाओँ की लिपियां बनी हुई है। इस आधार पर सिन्धु घाटी की लिपी को पढ़ने का सार्थक प्रयास “” सुभाष काक और इरावाथम महादेवन”” ने किया.। सिन्धु घाटी की लिपी के लगभग 400 अक्षर के बारे में यह माना जाता है कि इनमे कुछ वर्णमाला (स्वर व्यंजन मात्रा संख्या), कुछ यौगिक अक्षर और शेष चित्रलिपि हैं., अर्थात यह भाषा अक्षर और चित्रलिपि का संकलन समूह है., विश्व में कोई भी भाषा इतनी सशक्त और समृद्ध नहीं जितनी सिन्धु घाटी की भाषा लिपी मे है। सिन्धु घाटी की लिपि पशु के मुख की ओर से अथवा दाएं से बाएं लिखी जाती है,, सिन्धु घाटी की लिपी के लगभग 3000 टेक्स्ट प्राप्त हैं।🙏🏿
🙏👏 इनमे वैसे तो 400 अक्षर चिन्ह हैं, लेकिन 39 अक्षरों का प्रयोग 80 प्रतिशत बार हुआ है,, श्री, अगस्त्य, मृग, हस्ती, वरुण, क्षमा, कामदेव, महादेव, कामधेनु, मूषिका, पग, पंच मशक, पितृ, अग्नि, सिन्धु, पुरम, गृह, यज्ञ, इंद्र, मित्र आदि निष्कर्ष पर प्रयोग किया गया है। सिन्धू सभ्य गढ़कोट पाषाणकाल मे ही सैंधवी भाषा थी,, जिसे सिन्धु घाटी की लिपी में लिखा गया था। सिन्धु घाटी के लोग प्राकृतिक, गोत्रवाद , त्रिशूल मार्ग साधक मानवधर्म-शैवसँस्कृति को मानते थे। मानवधर्म– शैवसँस्कृति अत्यन्त प्राचीन है, 7000 BC से भी अधिक पुराना है। यह दुनियाँ का सही निष्कर्ष और सच बात साबित हो गया है। जो गोण्डवाना खण्ड के इतिहास पर पाया गया है। जिसको मान्यता शासन-प्रशासन नही दे रहा है यही सच है। 🙏🏿


🙏👏 किन्तु यदि हिन्दमहासागर के राम सेतु बाँध जिसे नासा ने खोज निकाला था और एडम ब्रिज नाम दिया था उसकी काल की अवधि की गणना करे तो वह लगभग साढ़े सोलह लाख वर्ष पुरानी मानी गई है। तब शैवसँस्कृति सभ्यता की काल अवधि भी इतनी ही पुरानी हो सकती है। सिन्धु सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन व मूल सभ्यता है। तैतीसगढ़ कोट समूहों का मूल निवास “” सप्त सैन्धव प्रदेश ( सिन्धु सरस्वती क्षेत्र ) “” था,, जिसका विस्तार “” ईरान से सम्पूर्ण भारत देश “” था। यही सिन्धु घाटी की सभ्यता है।🙏🏿
🙏👏 सिन्धु सभ्य पाषाणकाल मे मानवजाति मे मानवधर्म मे वैदिक धर्म को मानने वाले आर्य लोग-कहीं बाहर से आये हुए थे और मोहनदादा जोदड़ो-हड़प्पा काल के बाद यही आर्य-सवर्ण, ब्राम्हणीवादी लोग ही पहले आक्रमणकारी थे। इनके सिन्धु सभ्य हड़प्पा काल के पहले सिन्धु सभ्य शैवसँस्कृति में आर्य-सवर्ण, द्रविड़ जैसी कोई भी दो पृथक जातियाँ नहीं थीं,, मोहनदादा जोदडो हड़प्पा काल के बाद ही बुद्धि के विकास पर बौद्ध धर्म की स्थापना हुई, जिनमे परस्पर युद्ध हुआ होना शूरू हो गया और बौद्ध काल को खात्मा करके वैदिक धर्म के अनुसार मानवधर्म शैवसँस्कृति को भी खात्मा करके वर्ण ब्यवस्था के आधार पर वैदशास्त्रो और पुराणों की रचना कर जातिवाद हिन्दू धर्म की स्थापना कर दिया गया।🙏🏿
🙏👏आदिवासी शैवसँस्कृति काल को खतम कर दिया गया। गोण्डवाना खण्ड की स्थापना हो गई। संविधान के अनुच्छेद “” 330-342 “” से प्रमाणित है की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग “हिन्दू” नहीं हैं। ये भी सच है कि भारतीय संविधान में हिन्दू नाम से कोई धर्म ही नहीं है और ना ही किसी ब्राह्मण ग्रन्थ में हिन्दू नाम का कोई धर्म है । यदि कोई अधिक ज्ञानी है तो प्रमाणित करके बताये कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग हिन्दू हैं। हिन्दू होने के कारण भारत में किसी को “आरक्षण” नहीं मिला है।🙏🏿
🙏👏 सरकारी दस्तावेजों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों से, जो हिन्दू धर्म का कॉलम भरवाया जाता है, वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के अधीन अवैधानिक है। हकीकत तो ये भी है कि ब्राह्मणवादी लोग एससी एसटी ओबीसी को अपना गुलाम बनाए रखने के लिए ही उन्हें हिन्दू धर्म की संचालन किये जिन्हें जातिवाद हिन्दू धर्म कहते हैं, और जब अधिकार देने की बात आती है तो उन्हें शूद्र कह कर दुत्कार दिया जाता है। कुछ लोगों का मत है कि पहले जाति आधारित आरक्षण खत्म हो,, तब जातिवाद अपने आप समाप्त हो जायेगा। 🙏🏿


🙏👏हम ऐसे अज्ञानी लोगों को बताना चाहते हैं कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण किसी हिन्दूधर्म की विशेष जाति का भाग होने पर नहीं मिला है । इसलिए ये मानते हैं और कहते हैं कि पहले वर्ण व्यवस्था पर आधारित जातिवाद खत्म होना चाहिए । डीएनए जांच से प्रमाणित हो चुका है कि अनुसूचितजाति /जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोग भारतीय मूलनिवासी हैं और उन पर “विदेशी आर्य संस्कृति” अर्थात “वैदिक संस्कृति” अर्थात “मनुआर्य जातिवाद हिन्दू धर्म संस्कृति” अर्थात “ब्राह्मण धर्म” संस्कृति” ने इतने कहर बरसाये, जुल्म और अत्याचार ढाये हैं कि, जिनको जानकर मन में अथाह दर्द भरी बदले की चिन्गारी उठती है। जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता।🙏🏿
🙏👏 कोई धर्म अपने धर्म के लोगों पर अत्याचार जुल्म और कहर ढा सकता है, ऐसे लोग सामान्य धर्म के अंग कैसे हो सकते हैं। सामाजिक क्रांति के पितामह महात्मा ज्योति राव फुले जी ने कहा था,कि ग़ुलाम और गुलाम बनाने वालों का धर्म एक नहीं हो सकता” ,, जो हिन्दू शास्त्र अनुसूचित.जाति/जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लोगों को अपने धर्मग्रंथों द्वारा लिखित में अपमानित करते हों, ऐसे लोग (अपमान करने वाले और अपमानित होने वाले) सामान्य धर्म का हिस्सा कभी नहीं हो सकते हैं। हमें आरक्षण इसलिए नहीं मिला है कि हम हिन्दू वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था के अंग हैं। ये हिन्दू जातियाँ ब्राह्मणों ने भारतीय मूलवासियों को गुलाम बनाने के लिये जबरजस्ती थोपी गई हैं।🙏🏿
🙏👏 ब्राह्मणों ने भारतीय बहुजन लोगों पर जाति एवं वर्ण के आधार पर जो अत्याचार किये, उन अत्याचारों का आंकलन संविधान निर्माण कमेटी ने किया। उस आकलन के आधार पर भारतीय मूलवासियों को आरक्षण मिला है, न कि हिन्दुओं की जाति व्यवस्था का अंग होने पर ,, हम गर्व से कहते हैं कि हम हिन्दू नहीं हैं,, बल्कि भारत के मूलनिवासी हैं !! जय मूलनिवासी जय संविधान !! जहाँ इन्सान,, इन्सानों में भेदभाव अस्त्र है। उन्हीं जातिवाद हिन्दू इतिहास का ही तो वेदशास्त्र है ।। “”और “” ।। जहाँ हर इन्सान-इन्सान एक समान है ।। उस ग्रंथ-शास्त्र का नाम ही संविधान है 🙏🏿