

होली की शुभकामनाएं नहीं ले सकते और ना ही दे सकते क्योंकि गोंड गोंडी गोंडवाना प्रकृतिक पूजक होते हैं और होली त्यौहार प्रकृति के खिलाफ है। बाकी विवरण नीचे विस्तार से लिखा हुआ हैं ।
? होली त्यौहार का पुनर अवलोकन
? कोयतूरों कोई भी पर्व / पंडुम प्रकृति के खिलाफ नहीं है ।
? हिन्दू लोग त्यौहार मानते है और कोयतूर लोग पंडुम मानते है ।
त्यौहार का अर्थ “तुम्हारी हार” मतलब भारत के मूलनिवासियो की हार का जश्न मानते है।
पंडुम का अर्थ व्यवस्था को बनाए रखना / प्रकृति के संतुलन को बनाये रखना ।
? कोयतूर पर्वों/पंडुम मे प्रदूषण का कोई स्थान नहीं है।
कोयतूरों के पंडुम मे किसी न किसी प्राकर्तिक परिवर्तन या फसल बीज का उत्पादन या सेवा करना अर्थात उस विकसित फसल के प्रथम उत्पादन के उपभोग की शुरुआत अपने पेन, पुरखों, प्राकर्तिक पर सेवा अर्पण से करते हैं।
? हर पर्व/पंडुम मे पंडेम (बीज) का बहुत महत्व होता है अर्थात बीज का विकसित स्वरूप जो उस प्रजाति के वनस्पति को इस पृथ्वी पर अंनतकाल तक संचारित कर सके।
? कोयतूरों में पर्वों/पंडुमो मे व्यक्ति पुजा को महत्व नहीं दिया जाता जिस प्रकार दुसरे धर्मो में दिया जाता है।
? कोयतूरों के हर पर्व महान गोटूल एजुकेशन सिस्टम के शैक्षणिक उद्देश्यों को पुरा करता है।
? कोयतोरिन समुदाय का हर पंडुम औषधीय प्रायोजन, जैवविविधता..पोषण चक्र , परिस्थिति तंत्र, खगोलीय अध्ययन, रोगप्रतिरोधक क्षमता विकास, शारिरीक मानसिक विकास, आर्थिक आत्मनिर्भरता, सामुदायिक खुशी तंत्र, आदि उदेश्यों को एक साथ पुरा करता है .. आदि आदि
पर होली त्योहार और होलिका दहन पर हमें बिल्कुल विपरीत परिस्थितियाँ दृष्टिगोचर होती हैं …… ऐसे बहुत से दिकू त्योहार है जो हमारे मूल पंडुम के ढांचे को दबाने छुपाने के उद्देश्य से हमारे सिस्टम, रीतिरिवाज, परंपरा, धर्म, संसकृति के आगे पीछे कुटरचना द्वारा घृणास्पद, अलौकिक, अवैज्ञानिक, आडम्बर युक्त जाल बिछाया गया हैं…जैसे स्त्रियों को जलाना (होलिका दहन, सीता)…. लकडिय़ों को जलाकर प्रदूषण फैलाना…रासायनिक रंगों का उपयोग करने से आँखे ख़राब होना या कैंसर जैसी समस्या को बढ़ना….. फुहड़ता….चोरी के लिए उकसाना (माखन चोर). .. जलीय प्राकृतिक व्यवस्था को नष्ट करना (मूर्ति फल, फूल, राख का विसर्जन)…आदि आदि जो उपरोक्त तथ्यों से बिल्कुल विपरीत हैं।
होली के मूल स्वरूप को समझने के लिए हमें आर्य (दिकू) आगमन से पूर्व इस पखवाड़े को प्राकृतिक सौंदर्य मौसमी परिवर्तनों को भी दृष्टिपात करना होगा….. पवित्रतम मुराल (पलाश) … ज्ञान वृक्ष वलेक (सेमल)
हना और होरा मतलब ( प्रथम उपभोग चना की फसल का और उसे खाते वक्त मुंह में काला रंग लग जाना …. हरे चने को भुंजना) …. होले शब्द पर गोता लगाना होगा….. जाड़ा / निरूड़/ अरंडी वनस्पति का महत्व समझना होगा….. मेंज/अंडा के रहस्यों को समझना होगा…. हितुम पुंगार से लेकर रेला पुंगार के सुंदरता को महसूस करना होगा……
इसलिए प्रकृति सम्मत वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ हमारे पुरखों के बचाऐ पुरूड़ (प्रकृति) का आंनद लिजिये…. धर्म आण्डम्बरों और उनके त्यों… हार से खुद भी बचिए और इस पृथ्वी प्राकर्तिक को भी बचाइए…….
सेवा जोहार !! गोटूल जोहार !!
तिरु० नारायण मरकाम
[केबीकेएस बुम गोटूल यूनिवर्सिटी बेड़मामाड़]
[चना के नये फसलों को होरा में भुंज कर खाते है लोग…. जीब पर तीखापन और पैरों पर जलन….हर फसल अपने बीजों की सुरक्षा करती हैं..अपने पुर्ण विकसित होने तक ]
अब विशेष टीप :- लोग जो धर्म और किदवंती के आधार पर सोचते है …. कोया याने मां कि कोख, आवरण … याने बीज के खोल को यदि जला दे तो बीज कि आने वाली पीढियां अपने आप ही नष्ट हो जाती हैं। खोल याने रक्षा कवच याने … बुआ याया और बेटा …. याने होलिका और प्रहलाद …. याने मूलवासियों के बीज (याने पंडुम) का अन्नउत्पादक होना … सभी आने वाली मूलबीज नष्ट होना।
बुमकाल जोहार!!!