

रायपुर का बूढ़ा तालाब 13 वी सताब्दी में गोंड राजा रायसिंह जगत द्वारा खुदवाया गया था । गोंडवाना साहित्यों में उल्लेख मिलता हैं कि राजा रायसिंह जगत अपनी सेना और सेन्य सामान को लेकर चांदा राज्य होते हुए तथा लांजी राज्य में खारून नदि के पास पहुंचे । फिर टिकरापारा पहुचे । उन्हें खाना पानी की जरुरत महसूस हुई, पानी की समस्या दूर करने के लिए पुरैना, टिकरापारा में एक विशालतम तालाब खुदवाया । इस ताल को उनके साथ चलने वाले स्त्री-पुरुषों ने 12 एकड़ भूमि को 6 महीने में खोदकर तैयार किये । इसकी खुदाई के कार्य हेतु 3000 पुरुष एवं 4000 स्त्रियाँ काम करते थे । हाथी, बैल आदि पशुओं को भी खुदाई के कार्य हेतु उपयोग में लाया गया। कृषि औजारों का भी इस हेतु भरपूर उपयोग किया गया । इसका नामकरण अपने इष्टदेव “बूढ़ादेव” के नाम से किया गया । राजा रायसिंह इसी के पास गढ़ बनावाये जिसका नाम “रयपुर” रखा, जो बाद में अंग्रेजों के गलत उच्चारण के कारण “रायपुर” हो गया । यहाँ और भी अनेक तालाब बनवाए गए थे ।
रायपुर का साहित्य एवं प्रथम शिक्षा का केंद्र “राजकुमार कालेज” गोंडवाना कालीन


इस छत्तीसगढ़ में गोंडवाना के राजे, ज़मीदार और प्रजा ने अपने शासन में शिक्षा, साहित्य के विकास और संवर्धन के लिए 1880 ई० में ब्रिटिश शासन के दौरान जबलपुर में राजकुमार कॉलेज खोला। इसकी स्थापना 1882 ई० में गोंडवाना के राजाओं द्वारा 500 एकड़ भूमि को दान के माध्यम से रायपुर में स्थापित किया। रायपुर में स्थित यह राजकुमार कॉलेज आज भी छत्तीसगढ़ में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करता है। रायगढ़ के राजा भूपदेव सिंह के पुत्र राजकुमार चक्रधर सिंह पुर्रे, जिन्होंने संगीत, कला और साहित्य की दुनिया में रोशनी डाली और कई राजकुमारों ने इस संस्था से ज्ञान प्राप्त किया और दुनिया और समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाया।
“जवाहर बाजार” का विशाल द्वार


राजधानी रायपुर में जय स्तम्भ चौक से कोतवाली की ओर जाने वाले मुख्य मार्ग पर, मुख्य डाकघर के बगल में, जवाहर बाज़ार का विशाल द्वार बाईं ओर दिखाई देता है। रायपुर में रहने वाले ब्रिटिश सरकार के राजनीतिक एजेंट के कारण ब्रिटिश सरकार के राजा, जमींदारों, पटेलों और महाजनों को सरकारी काम से रायपुर आना पड़ता था, क्योंकि रायपुर में रहने की असुविधा को दूर करने के लिए, यहां बाड़ बनाकर रहते थे, यहां उन्होंने अपनी पसंद की सब्जियां, वस्तु खरीदते थे। उस समय का यह विशाल बाजार सारंगढ़ के राजा जवाहर सिंह की ओर से गोंडवाना के राजा महाराजाओं द्वारा बनवाया गया था। यह विशाल स्मारक आज नगर निगम की उदासीनता को व्यक्त करता है। आज छोटे व्यापारी खूंटा गाड़ कर इस दरवाजे पर कपड़े और फल और सब्जियाँ डाल रहे हैं और नगर निगम द्वारा स्टैंड बनाकर अपना कर वसूलते हैं, लेकिन उन्होंने कभी गोंडवाना स्मारक धरोहरो के उद्धार के बारे में नहीं सोचा।
“टाउन हाल”, कलेक्ट्रेट, रायपुर


कलेक्ट्रेट टाउन हॉल का निर्माण 1920 में गोंड राजा ने छत्तीसगढ़ के ज़मीदार, मुकद्दम, मालगुज़ार, महाजनों द्वारा विधानसभा, सागा समाज सम्मेलन, आदि के लिए रायपुर शहर बसने के बाद किया गया था। इस टाउन हॉल में छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुखों ने कभी न कभी बैठक और सामाजिक सम्मेलन आयोजित किए। आज भी इसका उपयोग इन कार्यों के लिए किया जाता है। गोंड समाज के पूर्वजों द्वारा किए गए उन ऐतिहासिक कार्यों को याद करने में मन प्रसन्न हो जाता है। गोंडवाना काल के भी अनेक स्मारक धरोहर हैं, लेकिन आज समाज के लोग इन इतिहास को न पड़ते है न जानने की कोसिस करते है, इस वजह से कई बार दूसरें समाज द्वारा अपने फायदे के लिए इन्हें नष्ट भी कर दिया जाता है।
रायपुर के ऐतिहासिक बुढा तालाब को अब विवेकानंद सरोवर के नाम से जाना जाता है। स्वामी विवेकानंद ने अपने जीवन के डेढ़ वर्ष रायपुर में बिताये। केवल इस वजह से स्मृति को अमिट बनाने के लिए, 37 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित की और तालाब का नाम स्वामी विवेकानंद रखा। जबकि इसकी जगह राजा रायसिंह जगत की प्रतिमा होनी थी, जिसने इस तालाब को बनवाया। इस शहर की स्थापना की और बसाया।