

साठ-सत्तर के दशक में पांच हजार का देसी कट्टा भी उतना काम नहीं करता था जितना ये चवन्नी का पोस्टर काम करता था, जिसमे स्वर्ग नर्क बना होता है ।
इसके पीछे मनुवादियों की पूरी साजिश थी, स्वर्ग नर्क के नाम पर लोगों को डराकर मनुवादियों द्वारा बनाए गए पाखंड को मजबूत करना ताकि गरीब बहुजन की गाढ़ी कमाई उनके पास वापस आ जाए। बहुजन समाज जहां मेहनत करके पैसा कमाता है, वहीं अनपढ़ पंडित पत्थर की मूर्ति से पैसे कमाता है और लोगों को डराता भी है।
भय फैलाने के लिए स्वर्ग नर्क आदि के पोस्टर बिकवाते हैं। वे सभी मेलों और आकर्षणों में आसानी से मिल जाते हैं। हमको बताया जाता था कि बुरे कर्म करोगे तो नर्क में पकोड़े की तरह तला जायेगा, सांप बिच्छूओं से कटवाया जायेगा, जो मंदिरों में चढ़ावा चढ़ायेगा वो स्वर्ग में जाकर ऐश करेगा हर पल दो चार परियां अगल बगल खड़ी मिलेगी खूब मजा मारोगे और हम भी ठहरे पूरे लुल्ल, खूब दान दिया मंदिरों खूब जगराता और कथा करवाया घरो में जब तक चड्डी ना गिरवी रख गई, दूसरी तरफ मनुवादी इसके डकैती, बेईमानी, उल्ट झूठ, छिनरई, मक्कारी, से खूब धन कमाया और अमीर बनते गये क्योंकि उन्हें पता था ये नर्क, स्वर्ग, ईश्वर सब काल्पनिक कथायें है ।
मनोरंजन के लिए आज भी नवमी, धनतेरस, दिवाली, जागरणों, होली, व्रत, त्योहारों में खूब खरीददारी करके मनुवादियों को आर्थिक संजीवनी देते रहते हैं क्योंकि बिजनेस में इनकी 95% हिस्सेदारी है और बहुजनों को भी पूजा करने की खूब चुल्ल मची रहती है करेंगे जरूर मंदिरों से भगा भी दिया जायेगा तो घर के पिछवाड़े में दो ईंट खड़ी करके एक नये देवता का निर्माण कर देंगे पूजा करने की खुजली जो मचती है क्या करें….
ब्रह्मणों, बनियों द्वारा टी०वी०, समाचार पत्रों में भी इन त्योहारों का जम कर प्रसार-प्रचार किया जाता है । जिसे देख कर बहुजन समाज इसे सच मान लेता है । बच्चो को तो स्चूलो से ही धार्मिक बनाया जातो है, जिससे पढ़-लिख कर भी अनजान बने रहते है ।
??जय मूलनिवासी जय भीम जय संविधान जय भारत??