1)- अन्य धर्म के अनुसार मनुष्य मृत्यू के बाद कहा जाता है??
उत्तर -स्वर्ग, नर्क जाता है या मोक्ष प्राप्त करता है ।
जबकि कोया पुनेम के अनुसार कोयतूर मृत्यू पश्चात ना तो स्वर्ग जाता है और ना नर्क जाता है और ना ही मोक्षगामी होता है क्योकि, कोया पुनेम स्वर्ग नरक मोक्ष परलोक के सिद्धांत को नही मानता ।


2)- तो अब सवाल ये है की आखिर “कोयतूर (कोयावंशी-गोंड )” मृत्यू के पश्चात अंतिम गति क्या है ? ?
उत्तर -कोयतूरो के मृत शरीर को दफनाकार उसे प्रकृति तत्व मे मिलाया जाता है और उनकी “भाव शक्ति” को “पेन रूप (देव रूप)” मे “बूढ़ाल पेन” “बूढ़ीमाई पेन” मे सम्मलित कर दिया जाता है ।
3)- अन्य धर्म अलौकिक शक्ति, अधिप्राकृतिक शक्ति, अधिआत्मिक शक्ति की पूजा, उपासना पर विश्वास रखते है । जिन्हे वे देव, भगवान, ईश्वर, परमात्मा आदि कहते है ।
जबकि “कोया पुनेम” मे कोयतूर अपने अपने कुल के पूर्वज के शक्ति को मानते है जिन्हे वे अलौकिक नही मानते बल्कि लौकिक, प्राकृतिक शक्ति के रूप मे “सेवा” करते है ।
4)- कोया पुनेम मे कोयतूर दो रूपो मे प्राकृतिक शक्ति की सेवा आराधना करते है…
1- वेन रूप मे, ये संसार के जीवित चीजो के जीवनिय शक्ति है ।
जैसे -स्वयं की शक्ति, विश्वास पशु पक्षीयो व वनस्पतियो की शक्ति , समाज की शक्ति आदि ।
2- पेन रूप मे (ये संसार की भौतिक व निर्जिव चीजो की शक्ति)
जैसे -अग्नि , जल वायु , आकाश ,मिट्टी , अणु , परमाणु , विघुत आदि की शक्तियां ।
>कोया पुनेमी जीवन में वेन और पेन की अवधारणा :-
कोया पुनेम में जीवन का मुख्य उद्देश्य सत्य के मार्ग पर चलते हुए सगा समाज की सेवा करना होता है । जब व्यक्ति का जन्म होता है तो वह वेन (मानव) रूप में सत्य के मार्ग पर चलते हुए कोया का पद प्राप्त करना उसका अंतिम लक्ष्य होता है ।
मानव तीन तरह से जीवन व्यतीत कर सकता है:-
पहले स्तर का जीवन निचले स्तर का जीवन होता है जिसमें वह व्यक्ति, परिवार, रिस्तेदार, आफिस के लोगों के बारे में काम करते हुए और सोचते हुए जीवन बिता देता है । इस स्तर का जीवन पशुओं के जीवन की तरह होता है ।
दूसरे स्तर का जीवन व्यक्ति घटनाओं के बात करते हुए और घटनाओं में उलझ कर बिताता है जो दोयम या माध्यम दर्जें का जीवन होता है । यह स्तर सामान्य मानव के जीवन स्तर के आसपास होता है ।
तीसरे स्तर का जीवन उच्च कोटि का मानव जीवन होता है जो देवत्व के समान होता है जिसमें व्यक्ति विचारों पर काम काम करता है विचारों में जीवन व्यतीत कर देता है । यह जीवन कभी भी मरता नहीं क्यूँकि विचार हमेशा उसे ज़िंदा रखते हैं ।
मृत्यु के बाद भी कोया पुनेम में जीव पेन (देव) रूप में हमारे आस पास ही रहता है और शक्ति के रूप में हमें सत्य का रास्ता दिखाता है । कोया पुनेम में मृत्यु के बाद स्वर्ग या नरक की अवधारणा नहीं है बल्कि जीवन की निरंतरता का सिद्धांत अपनाया और माना जाता है ।
डॉ. सूरज धुर्वे<
इसलिए कहा जाता है कोयतूर (कोयावंशी-गोंड) प्रकृति के साधक है किसी अलौकिक धर्म के उपासक नही ।
इसलिए वे ना तो आस्तिक है और ना ही नास्तिक है वे तो वास्तविक है ।
?सेवा जोहर? Narven kesav tekam ?प्रकृति जोहर?