

18 जून 1576 को हल्दीघाटी / खमनोर की घाटी के युद्ध में मेवाड़ के आत्म सम्मान के लिए लड़ते हुए हल्दी बाई भील ने अपने प्राणों का बलिदान दिया।
हल्दी बाई भील राजस्थान
कलिंग देश का राजकुमार महा पराक्रमी भील वीर कलिंग था और मालवा का राजा मूलतः भील ही था। प्रारंभ में रेवा तटीय प्रदेश भील राजाओं के कब्जे में था। बाद में राजपूत राजाओं के छल से स्त्रस्त होकर भील राजाओं ने इस प्रदेश को छोड़ दिया। तत्पश्चात सन 1480 में महंमद बेगडा ने इस प्रदेश पर अपना कब्ज़ा जमा लिया और भीलों को प्रताडित करना प्रारंभ कर दिया। तब भील राजाओं ने अपने बचाव के लिए जंल-पहाड़ों का आश्रम लेकर शत्रु पर टुट पड़ते और बीरमरण को स्वीकारते थे। सन 1556 में मुगलों ने मेवाड भर आक्रमण किया। इतिहास प्रसिद्ध राजपूत राजा महाराणा प्रताप की सेना और मुगलों की सेना के बीच घमासान लड़ाई हुई। इस लड़ाई का इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। यह लड़ाई हल्दीघाटी की लड़ाई से सुपरिचित है।
हल्दीघाटी का इतिहास बड़ा प्रसिद्ध है। यहाँ हुई इतिहास प्रसिद्ध युद्ध को हल्दीघाटी का युद्ध क्यों कहा जाता है, क्योंकि युद्ध में सबसे पहले जिसे वीर गति प्राप्त हुई महिला वह थी कोयूतर भील यवती हल्दी बाई भील राजस्थान ! उसके बलिदान को स्मृती के रुप में यें इस स्थान को हल्दीघाटी नाम पड़ा है। हल्दीघाटी की लड़ाई का नाम सुनकर, पढ़कर महाराणा प्रताप की प्रतिमा सामने आती है, परंतु जिस कारण से इस एतिहासिक स्थान का नाम हल्दीघाटी पड़ा, उस कोयतूर भील युवती हल्दी बाई भील को कोई स्मरण नहीं करता है इसलिए इतिहास के पन्नोपर भी हल्दी बाई भील का नाम नहीं है। अतः युवा पीढ़ी को चाहिए की हल्दी बाई भील का इतिहास समाज के सामने लाएं, यही भावना इसके पीछे है।
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