gondwana-culture
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वह भूमि जिसे आज हम हिंदुस्तान कहते है। उस भूमि को पहले गोंडवाना लैंड कहा जाता था और इसमें गोंड वंश के लोग शासक करते थे। उस समय ” गोंडवाना लैंड ” में केवल कोयतूर कोया वंशी गोंड रहते थे। तब से हमारे पूर्वज फड़ापेन-शक्ति का गोंगो कर रहे है और गोंडी धर्म का पालन कर रहे हैं।

लेकिन कुछ लोग निराश हैं कि हमारी कोई लिखित पुस्तक सबूत के रूप में नहीं है। मगर इसका सबसे बड़ा फायेदा यह है की कोयतूर संस्कृति को नस्ट नहीं किया जा सकता। जिस प्रकार आर्य ब्राह्मणों ने गोतम बुद्ध के ग्रंथो को देश से पूरी तरह नस्ट कर दिया था। हमारो इतिहस हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज, परंपरा, लोक गीत संगीत, नृत्य आदि में छुपा हुआ है जिसे हमें केवल समझने की जरुरत है।

दूसरो के धर्म ग्रंथो में न तो गोंडवाना लैंड के बारे में बताया जायेगा न ही संस्कृति और परंपराओं का उल्लेख किया जाएगा? वेद और पुराणों को लिखने वाले लोग गोंडवाना भूमि के नहीं है। गोंडवाना – साम्राज्य में आज से लगभग 1750 साल पहले पूर्वज लोग सोने, चांदी और तांबे के सिक्के / मोहर का इस्तेमाल करते थे।

हमारे पूर्वज कोयतूर संस्कृति और परंपराओं का पालन करते थे और आने वाली पीड़ी बताते थे। लेकिन अभी भी कुछ बच्चे अपनी संस्कृति को लेकर नापसंद या शर्म महसूस करते हैं, यह गोंडी अस्तित्व के लिए खतरा है।

हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था गोंड धर्म की वर्ण व्यवस्था से अलग है। अर्थात गोंडवाना हिन्दू धर्म के चार वर्णों में भी नहीं आए। देवासुर संग्राम में कोयतूरो की हार के बाद कोयतूर सिन्धु घटी की नगरीय सभ्यता से घने जंगलो की ओर चल दिए। इस तरह ब्राह्मणों कोयतूरो के कबीलाई क्षेत्रों में प्रवेश नहीं किये। ब्राह्मणों की आबादी नगरीय क्षेत्रों में थी।

1947 से पहले कुछ ब्राह्मण कबीलाई क्षेत्रों में आटा चावल मांग कर अपना जीवन यापन करते थे। लोग को वास्तविक इतिहास जानने के लिए उनकी अपनी वंशावली को पढ़ने समजने जानने की जरूरत है, जो मूल रूप से “गोंडी-भाषा” है।

गोंड राजवंश की मूलतः           

राज- गोंडवाना

भाषा- गोंडी            

धर्म- गोंडी (ट्राईबल रिलीजन)            

परिपाटी- गोंडी (कोया) पुनेम  

हमारे समाज के प्रत्येक बुद्धिमान भाई को युवा लोगों को खोज कर प्रशिक्षण देना चाहिए और युवाओं को समाज में सामाजिक क्रन्ति लाना चाहिए। सबसे दुखद बात यह है कि हममें से कुछ बड़े प्रशिक्षित अपने प्रशिक्षण में खुद को “गोंडी धर्म” का बनाने में शर्म आती है।

हमारे समाज में गोंडी संस्कृति रीति-रिवाजों को जानने सनाझने और पालन करने के बजाय, वे हिन्दूओं के रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। यहां तक ​​कि रोटी-बेटियां भी हिन्दू धर्म के अनुसार करते हैं। कुछ नेता जो गोंडों पर अपनी राज्य सत्ता बनाए रखने के लिए वैदिक परंपरा (हिन्दू धर्म) के कार्य को करने के लिए समाज पर दबाव डालते हैं।

हम दो कार्य करना चाहिए:-

★ हम लोग रीति-रिवाजों, प्राचीन गौरव और धर्मों को समझने की कोशिश नहीं करेगे, तो हमारी संस्कृति समाप्त हो जाती है।

★ गोंडी संस्कृति को समझने जानने के बाद समाज में दुसरे लोगो को संस्कृति के बरे में बताना चाहिए।

हमें गोंडी भाषा सिखने का प्रयास करना चाहिए। हमारे आस पास गोंडी भाषा का शब्द है जिसमें हमारा इतिहास छुपा है। जैसे गढ़, सेवा, जोहर, काका, गढ़पति (गढ़ का प्रमुख, लेकिन आर्य ब्राह्मणों ने इसे गणेश बना दिया), यादव (याद मने गाये) आदि। ये सभी गोंडी भाषा के शब्द है।

अगर हम चाहते है की लोग हम पर गर्व करे,तो हमें अपनी रीति-रिवाजों, संस्कृति को जानना समझना और पालन करना होगा।


कोयतूर कबीलो के अफ्रीका गुलाम

गोडी धर्म श्रेष्ट आखिर क्यों जाने | गोंडी धर्म क्या है

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