

महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, समाजिक कार्यकर्ता, प्रथम निर्दल विधायक, समाजवादी नेता, कोयतूरो एवं गरीबों के मसीहा, स्वतंत्र गोंडवाना राज्य, जल-जंगल-भूमि संरक्षण अधिकारों और क्षेत्र प्रतिबंधों से मुक्ति की लड़ाई लड़ने वाले, गोंडवाना क्रांतिकारी नारायण सिंह उइके जी ।
सन् 1952 के विधानसभा के चुनाव में निर्दलीय विधायक के रूप में पुराडा हेटी कुरखेड़ा से चुने गए, सामाजिक कार्य करते हुए नारायण सिंह ने विदर्भ के ‘जबराण ज्योत आंदोलन’ को चलाकर हजारो गरीब लोगों को खेत जमीन के पट्टे दिलाकर मालिकाना अधिकार दिलाए थे, इतना ही नहीं तो निस्तार अधिकार, कोयतूर क्षेत्र बंधन हटाओ मुहिम, व्यापारियों के प्रश्न ऐसे अनेक समस्याओं के लिए वे संघर्षरत रहें।
नारायण सिंह उइके का जन्म 11 जुलाई 1917 को विदर्भ के गोंदिया जिले के कटंगी (नगरा) गांव में हुआ था। उनके माता का नाम सीताबाई और पिता का नाम संपत सिंह उइके था। संपत सिंह प्राथमिक शिक्षक थे। अपनी सेवा के दौरान, उन्होंने कोयतूरों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। नारायण सिंह उइके वास्तव में अपने पिता के सामाजिक कार्यों से प्रेरित थे।
नारायण सिंह उइके ने 1925 के बीच गोंदिया के एक स्कूल में अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और बाद में मनोहर हाई स्कूल में अपनी शिक्षा पूरी की। 1935 में, उन्होंने दसवीं कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात आगे की शिक्षा के लिए नागपुर चले गए। 1942 में नागपुर विश्वविद्यालय से बी. ए किया हुआ। पढ़ाई के साथ साथ फुटबॉल, हॉकी, खो-खो, कबड्डी में निपुण थे। घर के हालात खराब होने पर भी उन्होंने ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की। बाद में उन्होंने मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के भोपालपुर गांव में मसराम कबीले की जमनाबाई नाम की लड़की से शादी कर ली। राजस्व निरीक्षक के रूप में काम करते हुए, उन्होंने याखो में रहने वाले एक गरीब कोयतूर के जीवन शैली का अनुभव किया। चूंकि उन्हें कम उम्र से ही सामाजिक कार्यों में रुचि थी, इसलिए उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और 1947 में चंद्रपुर के न्यू इंग्लिश हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में काम करना शुरू कर दिया। यहीं पर उन्होंने बिना किसी सरकारी अनुदान के कोयतूर बच्चों के लिए एक छात्रावास की स्थापना की। नतीजतन, गरीब कोयतूर बच्चे इन छात्रावासों में रहकर अध्ययन कर सकते थे। साथ ही कोयतूर मुद्दों के समाधान के लिए चांदा जिला आदिवासी सेवा बोर्ड की स्थापना। इसके बाद उन्होंने चंदा जिला कांग्रेस आदिवासी सेवा मंडल की स्थापना कर समाज सेवा की शुरुआत की। इस बोर्ड की ओर से जागरूकता पैदा करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम और मेलों का आयोजन किया गया।
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पहला विधानसभा चुनाव 1952 में चंद्रपुर जिले के पुरदा (हेटी) निर्वाचन क्षेत्र से लड़ा गया था। यहीं से उनका राजनीतिक सफर सचमुच शुरू हुआ। 1955 में, उन्होंने नाग विदर्भ आदिवासी सेवा मंडल का गठन किया, जिसके बाद उन्होंने भूमि अतिक्रमण के लिए लड़ाई शुरू की। सन् 1952 से 1967 तक अपने राजकीय जीवन में मजदूर, कोयतूर, किसान, भूमिहीनों के लिए आंदोलन कर सरकारी ज़मीन के पट्टे दिलवाये। सन 1952 से 1957 तक डॉ. राम मनोहर लोहिया के समाजवादी पार्टी में रहे। 6 दिसम्बर 1960 को नागपुर विधानभवन पर 1 लाख आदिवासियों का मोर्चा निकालकर सरकार को समाज की ताकत दिखाई। 1954 से 1958 तक भूमि अतिक्रमण की लड़ाई, सबसे पहले क्षेत्र प्रतिबंधों से मुक्ति की लड़ाई सफल रही। 1976 में क्षेत्र प्रतिबंध अधिनियम को निरस्त कर दिया गया। नारायण सिंह उईके जी के वैचारिक क्रांति से समाज को दिशा मिली।
संविधान मे गोंडो की जड़े काटने वाली छेत्र बंधन नियम को हटाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। 6 दिसंबर 1963 को तत्कालीन मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण के कार्यकाल के दौरान उन्होंने विधानसभा में कोयतूर मार्च निकाला। वह गढ़चिरौली तहसील कार्यालय के सामने 14 दिन के अनशन पर भी गए, लेकिन इस बार उन्हें जेल हो गई। 1969 में, वे फिर से विधान सभा के सदस्य बने। सत्याग्रह 1963 और 1964-65 में गढ़चिरोली तहसील कार्यालय के सामने 14 दिन का उपवास और जेल। बस्तर के राजा प्रवीणचंद्र भंजदेव की हत्या के विरोध में नागपुर में दस हजार कोयतूरों ने मार्च निकाला।
उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक दिन-कमजोर आदिवासियों के उत्थान के लिए काम किया और 26 जुलाई 1972 को आदिवासी रोने की किरण बुझ गई। नारायण सिंह ने अपना पूरा जीवन कोयतूर समुदाय की और जल-जंगल-भूमि संरक्षण अधिकारों के लिए लड़ते रहे। खुद का संपूर्ण जीवन और कमाई समाज के लिए न्योछावर कर दिया। जयंती के अवसर पर उनके विशाल कार्य को…. उनकी परिवर्तनकारी सोच को… प्रेरणादायक छवि को प्रणाम !!
जोहार
सेवा गोंडवाना