____गोंड जागीरदार राजा भभूति सिंह(भोपा)___

होशंगाबाद जिले मध्यप्रदेश के वीर सपूत

गोंड जागीरदार राजा भभूति सिंह का नाम अब किसी की जुबां पर नहीं आता। आज की पीढ़ी भी इससे अनजान है। जब आप इनके बारे में सुनेंगे तो यकीन मानिए शहीद भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे महान नायकों का जिक्र होने पर जो गर्व महसूस होता है, गोंड वंश के राजा भभूति सिंह का नाम आते ही आपका सीना चौड़ा हो जाएगा और आंखों में तेज उतर आएगा।

भभूति सिंह गोंड स्वतन्त्रा सेनानी वीर सपूत थे भभूति सिंह गोंड 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। भभूति सिंह गोंड को तलवार बाजी में महारत हासिल थी वही उन्हे तंत्र मंत्र में महारत थे। उन्हें तंत्र मंत्र बड़ादेव के उपासना से प्राप्त हुए थे, वह पंच शक्ति बड़ा देव को मानने वाले थे वह कट्टर गोंडीयन थे ।

राजा भभूत सिंह, राजा भभूत सिंह पचमढ़ी, पचमढ़ी, होशंगाबाद, Gond-Raja-Bhabhut-Singh
Gond-Raja-Bhabhut-Singh

उनके इशारे पर जंगली जानवर नाचा करते थे।

आप की युद्ध कला में मधुमख्खी की फ़ौज का बड़ा खोफ था,

यदि शत्रु संख्या बल में बहुत अधिक है तो आप मधुमख्खीयों को ईशारा कर देते थे उनकी यह विशेषता थी कि ये केवल दुश्मन सेनिको को नुकसान पहुंचाती थी।

दुर्भाग्य है जिले में आपका कोई सम्मानजनक स्मारक नही है वर्तमान गोंडवाना संगठनों के कारण अब उनकी मूर्ति रौबदार तलवार की धार के साथ पचमढ़ी के प्रवेश द्वार पर लगेगी साथ ही शैल चित्र पर अंग्रेजो से युद्ध गोंड सेना और मख्खी की सेना युद्ध के सीन के साथ लगेगी,

हमें जो इतिहास पढ़ाया गया उसमें पचमढ़ी की खोज कैप्टन जैम्स फॉरसोथ ने की थी। हमने भी फॉरसोथ को हीरो मान लिया, लेकिन हकीकत में फॉरसोथ ने अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाले राजा भभूति सिंह को खलनायक साबित कर दिया।

इस कारण हम उस त्याग और बलिदान को भूल गए। खैर देर से सही जिला प्रशासन ने इस सच्चाई को दुनिया के सामने लाने का बीड़ा उठाया है। प्रशासन की 3 टीमें जिले के आसपास घूमकर इतिहास में गुम नायक की वीरता की कहानियां का संग्रह करने में जुटी है। कोयतूर समुदाय में आज भी भभूति सिंह को याद किया जाता है। हरदा, बैतूल, छिंदवाड़ा और नरसिंहपुर जिले के लोग उन्हें गोंड राजा के रूप में मानते हैं।

पचमढ़ी के आसपास गोंड राजाओं के कई किले हैं। जो आज भी जीवित अवस्था मे है।

राजा भभूति सिंह का स्पष्ट इतिहास गजेटियर सहित दस्तावेजों में उनके अंग्रेजों से लड़ने के प्रमाण मौजूद हैं

राजा को छल से मारा गया था…

गोंड राजा भभूति सिंह सच्चे मायनों में आजादी के हीरो हैं। उन्हें छल से मारकर जैम्स फॉरसाेथ पचमढ़ी का खोजकर्ता बन गया। जबकि पचमढ़ी में पहले से लोगों के रहने के प्रमाण मिले हैं। उनके योगदान को दुनिया के सामने लाने के प्रयास कर रहे हैं। मटुकली में मूर्ति लगाने की तैयारी है।

भभूति सिंह होशंगाबाद जिले वीर सपूत हैं, जिन्होंने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था।

इतिहासकारों के मुताबिक राजा भभूति सिंह पचमढ़ी (होशंगाबाद) के पास पगारा के जागीरदार थे।

वे क्षेत्र में अंग्रेजों के दखल के खिलाफ थे। 1857 की पहली क्रांति के दौरान के उन्होंने तात्या टोपे को रुकने में मदद की। अंग्रेजों ने भभूति सिंह को अपने झांसे में लेने की बहुत कोशिश की। गोंड कोयतूर जो मवासी कोरकू जाति के थे, वे भभूति सिंह का कहना मानते थे। इस कारण अंग्रेज यहां के प्राकृतिक सौंदर्य पर कब्जा नहीं जमा पा रहे थे। इसलिए जागीरदार को रास्ते से हटाने का षडयंत्र रचा गया। उस समय भभूति सिंह के साथ हुल्ली भोई का भी एकछत्र राज्य था। अंग्रेजों ने नर्मदा पार फतहपुर के नबाव आदिल मोहम्मद खान को लालच देकर पगारा भेजा। जब वह कोशिश में नाकाम रहा तो दोनों जागीरदारों को घिरवाकर मरवा दिया। अंग्रेज पचमढ़ी को हथियाना चाहते थे। राजा भभूति सिंह इसके खिलाफ थे। इसलिए उन्होंने इस बगावत को स्वीकार किया।

अंग्रेज पचमढ़ी पर कब्जा करना चाहते थे ,

राजा भभूति सिंह का इतिहास अब ज्यादा दिनों तक दफन रहने वाला नहीं है। जिलेवासी तो उन्हें जानेंगे ही देश-दुनिया के लोग भी उनकी शहादत को सलाम करेंगे। इसके लिए पचमढ़ी के प्रवेशद्वार पर घोड़े पर सवार आदमकद धातु की प्रतिमा लगाई जाएगी। पास ही आधा एकड़ से ज्यादा जमीन पर पार्क बनाया जाएगा। दुर्भाग्य से भभूति सिंह का कोई भी छायाचित्र नहीं मिला है। ऐसे में जानकारियों में सामने आने वाले हुलिए को आधार बनाकर मूर्ति का रूप दिया जाएगा। टीमों के सामने कुछ लोगों ने उनके वंशज होने का दावा भी किया है, लेकिन अभी प्रमाण न मिलने के कारण खुलासा नहीं किया है।

राजा भभूति सिंह की शहादत के स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले हैं। कहीं उन्हें गोलियों से भूनकर मारने की बात सामने आई तो कहीं 1862 में जबलपुर जेल में फांसी देने की बात कही गई है। प्रमाण के लिए जबलपुर जेल से भी रिकार्ड दिखवाया जा रहा है। उनके कुछ हथियार और गुफाएं भी मिली हैं। भभुति सिंह के नेतृत्व में 1857 के विद्रोह के दौरान सोहागपुर तहसील पर अटैक किया गया। इसमें तहसीलदार की हत्या कर दी गई थी। जुलाई 1859 में भभूति सिंह ने खुला विद्रोह कर दिया। अंग्रेजाें ने मिलिट्री पुलिस और मद्रास इन्फेंट्री को भेजा। भभूति सिंह और हुल्ली भोई की मुठभेड़ देनवा घाटी में हुई। बताया जाता है कि 6 माह तक यह लड़ाई चली। दोनों को जनवरी 1860 में गिरफ्तार कर लिया। इस युद्ध में अंग्रेजों को काफी क्षति हुई। 1862 में भभूति सिंह की मौत के बाद अंग्रेजों ने पचमढ़ी क्षेत्र को पूरी कब्जे में लिया और अपनी गतिविधियां चालू कर दीं।

सेवा जोहर

सेवा गोंडवाना

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