आइये जानते हैं कि क्या लिखा हैं धार्मिक ग्रंथों में गणेश प्रतिमा विसर्जन के बारे में…
ब्राह्मणों की काल्पनिक कथा:-
वेद व्यास ने महाभारत कथा श्री गणेश को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी जिसे श्री गणेश जी ने किताब में लिखा था।
10 दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोली तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी के शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया है। तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को निकट के सरोवर(तालाब) में ले जाकर ठंडे पानी से स्नान कराया। इसलिए गणेश मूर्ति की स्थापना कर चतुर्दशी को उनको नदी या समुद्र के पानी में डुबोकर शीतल किया जाता है। इसी कथा में यह भी वर्णित है कि श्री गणपति जी के शरीर का तापमान ना बढ़े इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया।


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दलितों के अपमान की वास्तविक कहानी..
जानिए क्या हैं…गणेश प्रतिमा विसर्जन की पूरी सच्चाई.! :-
गणेश उत्सव की शुरुआत 1893 ई० से महाराष्ट्र में बाल गंगाधर तिलक ने की थी। ऐसा नहीं कि उससे पहले गणेश उत्सव नहीं मनाया जाता था। लेकिन वह केवल घरों की चारदीवारी तक सीमित था। 1893 ई० से पहले कभी भी गणपति का विसर्जन (नदी, समुद्र में डुबोना) नहीं किया जाता था।
एक वाल्मीकि अछूत बालक द्वारा मूर्ति छूने के कारण गणेश विसर्जन का आयोजन हुआ। क्योंकि मूर्ति छूने से धर्म डूब गया था। इसलिए धर्म को डूबने से बचाने के लिए तिलक ने मूर्ति को डुबाने का निर्णय किया और आज वही प्रक्रिया एक भेड़चाल बन गई।
और आप आश्चर्यचकित हो कि बाबा राम रहीम के समर्थन में इतनी भीड़ क्यों है.?
गणपति उत्सव को सर्वप्रथम शुरू करने वाले बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र के पुणे शहर के बाजार में मंडप सजा के गणपति बिठाया। दस दिन तक सभा और सम्मेलनों को संबोधित किया। बिठाए गए गणपति की दसवें दिन फेरी निकाली।


गणपति का दर्शन सभी के लिए खुला रखा गया था। एक नीची जाति के अछूत व्यक्ति (Untouchable Person) ने मूर्ति का दर्शन करने के क्रम में उसे छू दिया। इस तरह उनका गणपति अपवित्र हो गया।
ब्राह्मणों में खलबली मच गई। सभी पुजारी ब्राह्मण तिलक को गुर्राते हुये कहने लगे कि देखा, गणपति को सार्वजनिक किया, तो धर्म डूब गया !! अब कौन ब्राह्मण इस मूर्ति को अपने घर में रखेगा ?
तब तक फेरी पुणे (महाराष्ट्र) के बाहर और मुला मुठा नदी तक आ चुकी थी। तभी तिलक ने कहा, अरे चिल्लाते क्यों हो ?
शांत रहो… मैं धर्म को डूबने कैसे दूंगा ? धर्म को डुबोने की अपेक्षा हम इस अपवित्र मूर्ति को ही डुबो देते हैं।
…और इस प्रकार गणपति को डुबो दिया गया। तभी से प्रत्येक वर्ष दस दिन तक तमाम अछूतों द्वारा अपवित्र हुये गणपति को डुबा दिया जाता है। जिसे “गणपति विसर्जन” कहते हैं।
यह “ब्राह्मणी धर्म” का एक प्रमुख उत्सव है। यदि हिन्दू कंधे से कंधा मिलाकर दलितों के लिए लड़ाई नहीं लड़ सकते, तो दलित कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं कि गणेश उत्सव कमेटियों को चंदा देने से दृढ़तापूर्वक इंकार कर दें। कह दें कि, “हम दलित अपमान के किसी भी प्रतीक उत्सव में किसी भी तरह की भागीदारी नहीं निभा सकते।”


अब आपको अपनी बुद्धि, ज्ञान, तर्क, विवेक व वैज्ञानिक सोच से तय करना हैं कि क्या उचित हैं और क्या अनुचित