

द माउंटेन मैन दशरथ मांझी का जन्म 1934 और निधन 17 अगस्त 2007 को हुआ था । दशरथ मांझी बिहार राज्य के ‘गया’ जिले के पिछड़े गावं गह्लोर में रहते थे ।
यह गाव इतना पिछड़ा था की इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की भारत की स्वतंत्रा के बाद भी इस गावं में न तो दुकान थी न स्कूल और पानी के लिए भी 3 किलो मीटर तक पैदल चलना पड़ता था। इससे छोटी से छोटी जरूरतों के लिए वहाँ के लोगो को गावं से शहर की ओर पहाड़ पार करके जाते थे या पहाड़ के किनारे चल कर लगाकर 72 किलो मीटर का फासला तय करना पड़ता था। दशरथ मांझी एक पहाडी आदमी थे जो पहाड़ पर रहते थे और सरकार, राजनीति, समाज, शिक्षा, धर्म व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष करते थे ।
यह 22 वर्षों (1960-1982) के संघर्ष, जिद, दृढ़ता, विश्वास, निर्णायकता, मन की स्वशासन प्रणाली की अवहेलना और भीषण गर्मी में भी निरंतर कार्य की दुखद कहानी है ।
लगभग 138 करोड़ की आबादी वाले भारत देश के शहर में झुग्गीवासियों की एक महत्वपूर्ण संख्या है । एक ऐसा समाज है जो हर दिन एक प्रतिशत समाज सम्मानजनक जीवन जीने के लिए संघर्ष करता है और 1/2 प्रतिशत समाज लक्जरी और संघर्ष से दूर जीवन व्यतीत करते हैं, लेकिन यह स्वतंत्र देश के दिमाग की एक करुणा है, जो समाज, पत्नी और परिवार के प्यार के प्रति हठी है ।
आज लोगो को गरीबी का सामना करना पड़ रहा है । हालाँकि देश की आज़ादी के 74 साल बीत चुके हैं, विकास और सड़क, बिजली, पानी और कानूनी सेवाओं के लिए, ‘गावं के लोग एक साधारण जीवन जीने की कोशिश करते हुए गाँव के बाहर 300 फीट की पहाड़ी के पार रहते थे । गावं से बाहर तुरंत निकलने के लिए कोई सड़क नहीं थी, इसलिए गावं के लोगो को जीवन की आवश्यकताएं समय पर नहीं मिल पाती थीं । उनके पास पहाड़ी पर चढ़ने के अलावा कोई चारा नहीं था ।
गरीबी की वजह से दशरथ मांझी छोटी उम्र में ही घर से भाग के धनबाद में एक कोयले की खदान पर काम करने लगे, इस वजह से उन्हें सुरंग, पत्थर, चटानो को खोदने काटने की कला सिख ली थी। कुछ वर्ष काम करने के बाद फिर से अपने घर लौट आए और फुगानी नाम लड़की से विवाह कर लिए। फुगानी जिसे प्यार से फगुनिया बुलाते थे। फुगानी का दिनचर्या रोज दशरथ को रोटी पहुंचना था । एक दिन लकड़ी काट रहे दशरथ को खाना पहुचने गई थी उस समय फुगानी का पैर फिसल गया और वह पहाड़ो से गिर गई। जिससे वह बहुत ही जख्मी हो गई, कुछ घंटो में उसकी मौत हो गया। अगर फुगानी को तुरंत अस्पताल लेजाया गया होता तो वह बच सकती थी। लेकिन तुरंत गावं से शहर ले जाना संभव नहीं था। इस घटना से उनको बहुत आहात पंहुचा। कुछ दिनों तक दुखी रहने के बाद दशरथ मांझी ने संकल्प लिया, वह इस पहाड़ को काट कर बीचो बीच रास्ता निकलेगे।
तो उन्होंने पहाड़ को काटने का निर्णय किया । जब वो जवान थे तो उनके शरीर का हर हिस्सा सक्रिय था और वह तेजी से काम करते थे, लेकिन वे जब बुढ़ापे की अवस्था में आए तो कमजोर पढ़ गए।
कमजोर होने के बावजूत पहाड़ काटने का कार्य करते रहे । वह अपने भूखे पेट और छाती के साथ चट्टानों पर हमला करते रहे । वह दृढ़ संकल्प के साथ पहाड़ पर चढ़ना जारी रखे । पहाड़ से सड़क बनाने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी थी ।
गावं के लोग उसका मजाक उड़ाते थे की अकेला तू क्या कर लेगा और परिवार को कई बार भूखा रहन पड़ता था, लेकिन फिर भी वह नहीं रुके । गेल्हर से 75 किलोमीटर की दुरी और पहाडी हिल दशरथ के जीवन का खलनायक बन गया ।
साल-दर-साल, साल-दर-साल, पहाडी हिल नहीं हिला, और इसके बावजूद वे नहीं थके नहीं रुके । 10 साल बाद, जब एडमंड पर्वत की छाती में एक बड़ी दरार पड़ी, कुछ हाथ चलाने के बाद, और 22 साल बाद, 1982 में पहाड़ टूटने लगा ।


आख़िरकार पहाड़ की पराजय होना शुरु हो गया..तब जा कर दशरथ बाबा ने उस शक्तिशाली पर्वत के मुंह पर आखिरी घाव फेंका, जो सड़क के रूप में नजर आने लगा।
‘बहुस्कट’ जाति के भूमिहीन मजदूर द्वारा 300 फीट लंबी, 30 फीट चौड़ी और 25 फीट ऊँची पहाड़ को छेनी हथोडो से काट कर सड़क बन डाली, और इतिहास लेखन में एक अध्याय जोड़ गया था। अब गह्लोर और वजीरगंज की दुरी 10 कि०मी० रह गया। बच्चो का स्कूल पहले 10 था 3 कि०मी० रह गया। पहले अस्पताल पहुचने के लिए दिन भर लग जाता था अब आधे घंटे में पहुच जाते है। आज उस रास्ते को 60 गावं के लोग उपयोग कर रहे है।
दशरथ मांझी ने कहाँ:- “अपने बुलंद होस्लो और तुम्हे जो कुछ आता है, उसी की दम पर में मेहनत करते रहो। मेरा यही मंत्र था अपनी धुन में लगे रहो, अपना काम करते रहो। चीजे मिले न मिले इसकी परवाह न करो क्योकि हर रात के बाद दिन तो आता ही है”।


उनके इस प्रयास से बिहार सरकार ने पदमश्री के लिए उनका नाम का प्रस्ताव रखा। दशरथ मांझी के नाम पर पक्की सड़क और एक हॉस्पिटल निर्माण का वादा किया।
दशरथ मांझी ने अपने अंतिम समय में अपने ऊपर फिल्म बनाने का अधिकार दे दिया ताकि दुनिया को ये बता सके की सफलता पाने के लिए जरुरी है हम अपने प्रयास में निरंतर जुटे रहे। क्योकि जब लोगो निरंतर प्रयास छोड़ते है तब वह सफलता के कितने करीब होते है।
17 अगस्त 2007 को कैंसर का इलाज करते हुए AIIMS दिल्ली में उनकी मृत्तु हो गई। उनका अंतिम संस्कार बिहार सरकार द्वारा राजकीय सम्मान के साथ किया गया।
फिल्म अभिनेता आमिर खान ने अपना लाखो का फायदा करने के लिए मार्च 2014 में चले आ रहे धारावाहिक सत्यमय जयते सीजन 2 के फर्स्ट एपिसोड में दशरथ मांझी को दिखाया। आमिर खान ने दशरथ मांझी के बेटे भागीरथ मांझी और बहु बसंती देवी से मुलाकात की और बड़े बड़े वादे किये। उनकी गरीबी को देखते हुए वित्तीय सहायता प्रदान करने का वादा किया लेकिन 1 अप्रैल 2014 को पैसे नहीं होने की वजह से बसंती देवी की मृत्तु हो गया। बसंती देवी के पति ने ये कहा अगर आमिर खान ने मद्दत का वादा पूरा किया होता तो शायद बसंती देवी आज जिन्दा होती।
वन विभाग द्वारा अवैध रूप से सड़क बनाने के लिए उन्होंने कोई पुरस्कार नहीं दिया गया। नीतीश कुमार ने सरकार द्वारा दी गई जमीन को अस्पताल बनाने के दान कर दिया। नीतीश सरकार को वहां पक्की सड़क बनाने में 30 वर्ष लग गए, उनके अंतिम शब्द, “किसी ने भी ऐसा नहीं किया होगा जो मैंने अपनी पत्नी के प्यार में किया है।”
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