

बस्तर के कोयतूरो अपने भोजन के साथ चापड़े की चटनी (लाल चींटे की चटनी) खास तौर पर खाते है, जो बड़ी लजीज और औषधीय गुणों से भरपूर मानी जाती है।
चापड़े की चटनी डेंगू और मलेरिया का कारगर इलाज है।
जंगल में पाए जाने वाला लाल चींटा जिसे चापड़ा कहा जाता है। इसे बस्तर के कोयतुर बड़े चाव से चटनी के रूप से बनाकर खाते है।
ग्रामीण के अनुसार कि हरी धनिया, मिर्ची, और टमाटर के मिश्रण से चापड़ा की लजीज चटनी पीसी जाती है। ग्रामीणों के अनुसार चापड़ा से मलेरिया तथा डेंगू की बीमारी का इलाज होता है। ऐसी मान्यता है कि साधारण बुखार को ठीक करने के लिए चापड़ा (लाल चीटों) से स्वयं को पेड़ के नीचे बैठकर कटवाते हैं, इससे ज्वर उतर(बुखार) जाता है। कोयतुरों के भोजन में अधिकतर तरीके से शामिल है चापड़ा की चटनी।
बस्तर ग्रामीण बाजारों में चापड़ा 5 से 10 रुपए डोना बेचा जाता है। ग्रामीण जंगल में जाकर पेड़ के नीचे चादर, कपड़ा, गमछा बिछाकर जोर-जोर से पेड़ की शाखाओं को हिलाते हैं। जिससे चींटियां कपड़ा पर गिर जाती हैं, फिर उन्हें इकट्ठा करके बाजार में बेचा जाता हैं।