बोरे-बासी
बोरे-बासी छत्तीसगढ़ में काफी चाव से खाया जाता है। बोरे-बासी को बनाने के लिए ताजा भात को जब पानी में डुबाकर खाया जाता है तो उसे बोरे कहते हैं। यदि इसे दूसरे दिन खाया जाए तो इसे बासी कहा जाता है। इसकी जानकारी डॉ. सुधीर शर्मा की पुस्तक में संकलित डॉ. गीतेश अमरोहित द्वारा लेख में दी गई है।


किसके संग खाएं बासी
बोहार भाजी, आम या नींबू का अचार, चेंच भाजी, दही या मही डालकर, कांदा भाजी, रखिया बड़ी, खट्टी भाजी, प्याज और हरी मिर्च, मसूर दाल की सब्जी या मसूर बड़ी, रात की बची हुई अरहर दाल के संग, लाखड़ी भाजी, आम की चटनी, कढ़ी, सलगा बरा की कढ़ी, बिजौरी, जिर्रा फूल चटनी।
बासी खाने से लाभ
- बासी खाने से होठ नहीं फटते, पाचन तंत्र में सुधार होता है।
- यह पानी से भरपूर होता है, जो गर्मियों में ताजगी प्रदान करता है।
- पानी मूत्र विसर्जन क्रिया को बेहतर बनाता है, जिससे रक्तचाप नियंत्रण में रहता है।
- मूत्र और पथरी संस्थान की दूसरी बीमारियों से बचाता है।
- चेहरे के साथ-साथ पूरी त्वचा में चमक पैदा करता है। यह मांड और पानी के कारण होता है।
- बवासीर, गैस और कब्ज से दूर रखता है।
- मोटापे से बचाता है। मांसपेशियों को ताकत देता है।
कब-कौन करें परहेज
- सूर्यास्त के बाद बासी खाना नहीं चाहिए।
- बहुत ठंडे या बहुत बरसात दिन पर।
- मरीज जो अस्थमा से पीड़ित है इसे खाने से बचें।
- सर्दी या सांस की बीमारी वाले मरीज।
- जो लोग अधिक सोते हैं।
- छोटे बच्चे दो साल से कम उम्र के भी।
- ठंडे स्थान में रहने वाले लोग।
- अधिक गर्म भोजन करने के तुरंत बाद।
डिब्बे से मजदूरों की गिनती
खेत के मजदूर अक्सर बासी का बक्से को एक पेड़ के नीचे एक पंक्ति में रख देते हैं। खेत का मालिक बक्सों को देखता है और अनुमान लगाता है कि कितने मजदूर आए हैं।
फायदा: समय बताती है बासी
अगर आप बासी खाते हैं, तो इसका मतलब 1-2 बजे हैं। अगर कोई पूछे कि आप किस समय काम पर जाएंगे – सामने वाला कहता है – बासी खा के निकलुं, यानी करीब 8 बजे निकल जाओगे।
कुछ रोचक बातें…छत्तीसगढ़ी में कहावत है- बासी के नून नई हटे
- स्कूल के बच्चे गुरुजी से अनुमति माँगने के लिए कहते हैं – बासी खाएँ बार जहाँ गुरुजी।
- छत्तीसगढ़ी कहावत है- बासी के नून नई हटे। यानी गई हुई इज्जत वापस नहीं आती।
- बासी चावल पकाना, पान रोटी या फरा बनाने के लिए भी उपयोगी है।
- शेष बासी रुका हुआ नमक मिलाकर पशुओं को खिलाया जाता है।
- छत्तीसगढ़ी एलबमों और फिल्मों में भी बासी खाना खाने के दृश्य हैं।
- बोरे बासी छत्तीसगढ़ के लेखक कवियों का प्रिय विषय रहा है। बोरे बासी पर दोहा, चौपाई, कुंडलिया, छप्पय, त्रिभंगी, बरवै, आल्हा जैसे छंदों में साहित्य रचा गया है।