

गोंडवाना की शान असीरगढ़ का किला बैतूल तहसील में था, जो वर्तमान में बुरहानपुर तहसील बुरहानपुर जिला मध्यप्रदेश (भारत) में है। जहाँ गोंड राजाओं के प्राचीन किले के भग्न अवशेष विद्यमान है। मुगल काल के पहले यहाँ पर गोंड राजाओं की अधिसत्ता थी। गोंड समुदाय में प्रचलित जनश्रृति के अनुसार इस गढ़ के प्रथम राजा मोंगाडूर कोरकाल (कोरकूगोंड) था, जिसने असीरगढ़ (अभेद्यगढ़) बनवाया।
इस किले की प्राचीनता के लिए कोई दस्तावेज प्रमाण तो उपलब्ध नही है, परंतु दो रम्य पहाडियों से घिरे दुर्ग की अजेय सृदृढ एवं अभेद्य स्थिती को देखते हुए कहा जा सकता है की जिसनें भी इस किले (दुर्ग) कों बनवाया होगा वह बहुत ही दूरदर्शी था। ऐसा दीनानाथ पांडे का मत है।
मध्य रेल्वे लाईन के खन्डवा बुरहानपुर के मध्य स्थित, असीरगढ़ रेल्वे स्टेशन से 25 की.मी. दूरी पर, सतपुडा पर्वत श्रृंखला समुद्र सतह से करीब 761 मीटर की ऊंचाई पर यह किला (दुर्ग) बना है। इतिहास में इसे दक्षिण द्वार कहा गया है। दक्षिण भारत में विजय करने से पहले इस किले पर विजय पाना अनिवार्य था।
गोंड समुदाय में प्रचलित कथा के अनुसार हिजरी सवंत 866ई० मे मोहम्मद खिलजी ने असीरगढ़ को घेर कर उसमें कब्ज़ा करने के उदेश से वहां पास के स्थान में डेरा जमाए हुए थे।
Asirgarh-Fort-scripture Asirgarh Fort Near Burhanpur
एक रात जब मोहम्मद की आखं खुली और उसनें सामनें पाया की अंधेरे में भोर का तारा चमक रहा है, मानो सुबह हो गयी। उसने फौरन अपने गुलामों को आवाज दी और आँखे धोने के लिए पानी मांगा, तब गुलाम ने बताया “हुजूर अभी रात बाकी है, जिसे आप भोर का तारा समज़ रहे है वह तो असीरगढ़ पर जलनें वाला चिराग(मसाल) है”।
इतनी उँचाई देखकर मोहम्मद हैरान रह गया, उसने समज लिया घेरा बेकार है। इतनी उँचाई पर फतेह पाना नामुकीन है और बीना आक्रमण किए लौट गया।
किला के प्रवेश द्वार पर केन्द्रीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा लगे सुचना पटल में कहा गया है कि उत्तर भारत से दक्षिण भारत को जोडने वाला प्राचीन मार्ग पर यह किला बना है जो सबसें ऊँचे और शक्तिशाली गढ़ों मे से एक है। इसकी तीन किले बने हुए है सबसें पहले ऊँचे किले का नाम असीरगढ़, बीच में कमरगढ़ और तलहटी में मलयगढ़ है।
इतिहासकार फरिस्ता ने इस किले कों आठवी शताब्दी मे आसरा अहिर अर्थात ‘आसरा’ नाग गण्ड चिन्ह धारक राजाद्वारा निर्मित कराया गया किला है, उसी के नाम पर इस किले का नाम ‘आसरागढ़’ (आसिरगढ़) कहा जाता है। इस किले पर आसरा नाग राजाओं का करीब 700 साल तक शासन रहा। असीरगढ़ की तरह गोंडवाना मे खेड़लागढ़, देवगढ़, नरनालागढ, गावीलगढ़ आदि अनेक ऎसे किले है, जो जनजातीयों यथा कोरकूगोंड, गोंड, कोल आदि द्वारा बनवाऎ है।
813 में खलिफा हारुल रसीद के बेटे अल मानून ने चितोड पर आक्रमन किया था और उसमें चितोड की साह्यता के लिए असीरगढ़ के गोंड राजा से सेना भेजने की मांग की थी, राजा ने फिर सेना भेजी। इससें स्पष्ट है की दुर्ग (किला) का अस्तित्व 8वी शताब्दी में भी था। अलाउद्दीन खिलजी ने 1295 मे देवगिरी की विजय सें लौटकर असीरगढ़ को फतेह किया। बाद में यह किला देवगढ़ के गोंड राजा जाटबा ऊईके के अधिन हो गया और पश्चात अकबर के अधिसत्ता मे चला गया।
साभार- गोंडो का मूल निवास स्थल परिचय
लेखक- आचार्य डॉ०मोतीरावण कंगाले जी
संकलन- अशोक आडे हिंगणघाट